उत्तराखण्ड

दो लोगों की जान लेने वाले पुल से सेना ने हाथ खींचे

देहरादून। गढ़ी कैंट बोर्ड क्षेत्र के जिस बीरपुर पुल के ढहने से दो लोगों की जान चली गई, उसकी जिम्मेदारी लेने से सेना ने इन्कार कर दिया है। गंभीर यह कि मिलिट्री इंजीनियरिंग सर्विस (एमईएस) के कमांडर वक्र्स इंजीनियर कार्यालय के अधिकारियों ने भी साफ कहा कि पुल उनके अधीन था ही नहीं। यह स्थिति तब है, जब पुल सेना की ए-वन श्रेणी की भूमि पर स्थित था। इस बात की तस्दीक देहरादून सब एरिया के एडम कमांडेंट के 12 सितंबर 2018 के उस पत्र से भी होती है, जिसमें लोनिवि को यहां पर नया पुल बनाने की स्वीकृति दी गई थी।

इसके बाद भी सेना का पुल से हाथ खींचना कई सवाल खड़े करता है। पुल के ढहने के बाद इस बात को लेकर वर्तमान में सब एरिया के एडम कमांडेंट वीरेंद्र सिंह का पक्ष जानना चाहा तो उन्होंने दो टूक कह दिया कि इस मसले पर उन्हें कुछ भी नहीं कहना है और वह इसके लिए अधिकृत भी नहीं है। वहीं, कमांडर वक्र्स इंजीनियर के अधिकारियों ने तो यहां तक कहा कि देहरादून की तरफ से जाने पर पुल को जोड़ने वाला मार्ग कैंट बोर्ड के अधीन है, जबकि पुल के दूसरे छोर वाला मार्ग उनके पास है। इसके साथ ही अधिकारियों ने कहा कि पुल की जिम्मेदारी कभी एमईएस के पास रही ही नहीं है, न ही उन्होंने कभी पुल पर मरम्मत का ही काम किया।

सब एरिया के पत्र में छिपी अनदेखी की कहानी

हादसे के बाद सेना पुल की जिम्मेदारी लेने से बचती दिख रही है, जबकि स्वयं सब एरिया का पत्र इस बात की तस्दीक करता है कि पुल उसके ही अधीन था और इसके रख-रखाव की जिम्मेदारी एमईएस की रही है। भविष्य में भी यही स्थिति बरकरार रखने की बात पत्र में कही गई है।

लोनिवि को बीरपुर के जर्जर पुल (वर्तमान में ढह चुका है) के बगल में नया डबल लेन पुल की स्वीकृति उत्तराखंड शासन से मार्च 2018 में प्राप्त हो चुकी थी। तभी से लोनिवि सब एरिया से यहां पर पुल निर्माण की स्वीकृति देने की मांग कर रहा था। इसको लेकर लोनिवि प्रांतीय खंड के अधिशासी अभियंता जगमोहन सिंह चौहान ने 27 अगस्त 2018 को सेना के अधिकारियों से मुलाकात भी की थी। इसी क्रम में सब एरिया के एडम कमांडेंट ने 12 सितंबर को निर्माण की स्वीकृति प्रदान कर दी थी। हालांकि, उन्होंने अपने पत्र में स्पष्ट किया था कि लोनिवि के पास सिर्फ पुल निर्माण का अधिकार रहेगा। निर्माण के बाद पुल को सेना के सुपुर्द करना होगा। पुल के रख-रखाव संबंधी कार्य के लिए एमईएस को ही अधिकृत बताया गया। यहां तक कि निर्माण क्षेत्र में आवागमन को लेकर भी लोनिवि को किसी तरह के अधिकार न होने का जिक्र पत्र में किया गया है।

रक्षा मंत्रालय 2016 में दे चुका था हरी झंडी, सब एरिया में लटका मामला

यदि सब एरिया देहरादून जर्जर पुल की समय पर सुध ले पाता तो शायद इस हादसे को टाला जा सकता था। क्योंकि रक्षा मंत्रालय नवंबर 2016 में ही उत्तराखंड सरकार को पुल निर्माण की हरी झंडी दे चुका था।

रक्षा मंत्रालय के वित्तीय प्रभाग ने 27 नवंबर 2011 को राज्य सरकार के माध्यम से पुल निर्माण की स्वीकृति प्रदान कर दी थी। इस क्रम में रक्षा संपदा के महानिदेशक को भेजे गए पत्र में इस स्वीकृति का जिक्र किया गया था। पत्र की प्रति सेंट्रल कमांड लखनऊ समेत देहरादून कैंट बोर्ड के सीईओ समेत लोनिवि के अधिशासी अभियंता को भी भेजी गई थी। पत्र में स्पष्ट किया गया था कि पुल का निर्माण लोनिवि करेगा, मगर कोई भी भूमि राज्य सरकार या लोनिवि को हस्तांतरित नहीं की जाएगी। निर्माण के लिए छह माह की अवधि भी तय की गई थी और निर्माण की निगरानी की जिम्मेदारी बोर्ड के मुख्य अधिशासी अधिकारी को दी गई थी। हालांकि, इस पत्र के क्रम में सब एरिया देहरादून के स्तर से एक औपचारिक अनुमति दी जानी थी।

जिस तेजी से रक्षा मंत्रालय ने निर्माण की अनुमति दी, उतनी तेजी सब एरिया देहरादून के स्तर से नहीं दिखाई गई। अनुमति को लेकर मार्च 2018 में लोनिवि प्रांतीय खंड के तत्कालीन अधिशासी अभियंता एएस भंडारी ने पत्र भी लिखा था। जिसमें उल्लेख किया गया था कि नया पुल बनाने के लिए दो करोड़ 37 लाख 58 हजार रुपये की स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है। पत्र में इस बात का भी उल्लेख था कि स्वीकृति जल्द दी जाए, ताकि उसके निर्माण के बाद पुल को सेना को हस्तगत किया जा सके। क्योंकि वर्तमान में उसका रख-रखाव एमईएस के ही पास है। हालांकि, इसके बाद भी सब एरिया के स्तर से स्वीकृति छह माह बाद तब दी गई, जब वर्तमान अधिशासी अभियंता जगमोहन सिंह चौहान स्वयं सेना के अधिकारियों से मिलने पहुंचे।

सौंग व सुसवा के पुल हुए जर्जर

जब कोई बड़ी अनहोनी होगी, शायद तभी प्रशासन जागेगा। दून-हरिद्वार हाईवे पर सत्यनारायण मंदिर के पास सुसवा नदी पुल की हालत को देखकर तो यही लगता है। यह पुल जर्जर हालत में है। इस पर गड्ढे व दरारें पड़ गई हैं। कई जगह पर टूटी और जर्जर रेलिंग हादसे को निमंत्रण दे रही हैं, लेकिन जिम्मेदार चुप हैं। हरिद्वार-ऋषिकेश हाईवे की दुर्दशा राहगीरों पर भारी पड़ रही है।

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