देहरादून। नई कंपनी में समायोजन की मांग को लेकर आपातकालीन सेवा 108 व खुशियों की सवारी से निकाले गए कर्मचारियों का धरना जारी रहा। कर्मचारियों ने घंटाघर पर भीख मांगकर विरोध प्रदर्शन करने की तैयारी की थी, पर प्रशासन से अनुमति नहीं मिलने के कारण ऐन वक्त पर यह कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा।
उधर, कर्मचारियों के समर्थन में कांग्रेस व अन्य पार्टियों के पदाधिकारी व कार्यकर्ता दूसरे दिन भी धरना स्थल पर पहुंचे। उन्होंने कहा कि सरकार पिछले एक दशक से अधिक समय तक तैनात रहे इन कर्मचारियों को बहाल नहीं करती है तो सड़क से लेकर सदन तक आंदोलन किया जाएगा।
बता दें, राज्य में पिछले एक दशक से आपातकालीन सेवा 108 व खुशियों की सवारी का संचालन जीवीके ईएमआरआई कर रही थी। अनुबंध खत्म होने के बाद अब इस सेवा का संचालन नई कंपनी कैंप ने शुरू कर दिया है। वहीं पुरानी कंपनी जीवीके ईएमआरआइ के फील्ड कर्मचारियों का आरोप है कि उन्हें नई कंपनी में समायोजित नहीं किया जा रहा है।
जिन फील्ड कर्मचारियों का समायोजन किया जा भी गया है या करने का प्रस्ताव दिया जा रहा, वह पूर्व की भांति कम वेतन व भत्तों के आधार पर। धरनास्थल पर वक्ताओं ने कहा कि स्वास्थ्य विभाग का रवैया अड़ियल बना हुआ है। यही वजह कि 108 सेवा का जिम्मा संभालने वाली कंपनी शुरुआती चरण में ही मनमानी पर उतारू हो गई है। अनुभवी कर्मचारियों को आपातकालीन सेवा में तैनात नहीं किए जाने से साफ होता है कि कंपनी द्वारा राज्यवासियों की जान के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।
फील्ड कर्मचारियों ने स्वास्थ्य विभाग व नई कंपनी के प्राधिकारियों के उस बयान को भी गलत बताया है जिसमें कहा गया था कि पुरानी कंपनी के साठ फीसद कर्मचारियों का समायोजन किया जा चुका है। कहा कि नई कंपनी द्वारा पुराने कर्मचारियों का वेतन व भत्ता बढ़ाए जाने के बजाय बहुत कम वेतन पर ज्वाइनिंग करने के लिए कहा जा रहा है। जब तक उन्हें बहाल कर समुचित वेतन व भत्तों के साथ नई कंपनी में समायोजित नहीं किया जाता है और सेवा नियमावली नहीं बनाई जाती है तब तक आंदोलन जारी रहेगा।
संजीदा हो सरकार
पूर्व दर्जाधारी एवं भाजपा नेता रविंद्र जुगरान ने भी कर्मचारियों के आंदोलन का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि वेलफेयर स्टेट की अवधारणा को धरातल पर उतारने का प्रयास करते हुए राज्य सरकार को सभी कर्मचारियों की बहाली कर नई कंपनी कैंप में समायोजित करना चाहिए। जुगरान ने कहा कि यदि राज्य सरकार में मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति हो तो यह निर्णय लेना कोई बड़ी बात नहीं है।