-न्यायिक कार्यों सहित अधिकरण के सभी कार्यों में हिन्दी प्रयोग का रास्ता खुला
देहरादून। उत्तराखंड गठन के समय से ही हिन्दी उत्तराखंड की राजभाषा है और उच्च न्यायालय के अतिरिक्त सभी प्राधिकारियों व न्यायालयों में हिन्दी का सभी कार्य में प्रयोग किये जाने का प्रावधान है। लेकिन 2001 में गठित उत्तराखंड लोक सेवा अधिकरण में अभी तक हिन्दी का प्रयोग न्यायिक कार्यों में नहीं हो रहा था। माकाक्स अध्यक्ष तथा सूचना अधिकार कार्यकर्ता नदीम उद्दीन एडवोकेट की पहल व उनके अनुरोध पर लोक सेवा अधिकरण में न्यायिक कार्यों सहित सभी कार्यों में हिन्दी प्रयोग का रास्ता खुल गया हैै। नैनीताल पीठ में उनके द्वारा हिन्दी में दायर पहली दावा याचिका सुनवाई हेतु स्वीकार भी कर ली गयी है।
प्रतिष्ठित समाज सेवी संस्था माकाक्स के अध्यक्ष तथा सूचना अधिकार कार्यकर्ता व 25 वर्षों से अधिक से कानूनी क्षेत्र में हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा देने को संघर्षरत नदीम उद्दीन एडवोकेट ने लोक सेवा अधिकरण के अध्यक्ष जस्टिस यू.सी.ध्यानी से अधिकरण के सभी कार्यों में हिन्दी के प्रयोग करवाने का अनुरोध अपने पत्रांक 101 19 फरवरी 2021 से किया था। उन्होंने उत्तराखंड में लागू उ0प्र0 लोक सेवा अधिकरण (प्रक्रिया) नियमावली 1992 के नियम 3 तथा उ0प्र0 लोक सेवा अधिकरण पद्वति नियमावली 1997 के नियम 4 की ओर अध्यक्ष का ध्यान भी आकर्षित कराया था जिसमें अधिकरण की भाषा देवनागरी लिपि में हिन्दी होने तथा सभी याचिकाओं व प्रार्थना पत्रों में हिन्दी प्रयोग का प्रावधान है। श्री नदीम के अनुरोध के उपरान्त उत्तराखंड सरकार की ओर से विभिन्न केसों में दाखिल किये गये काउन्टर एफिडेविट/लिखित कथन हिन्दी में फाइल किये गये तथा अधिकरण द्वारा स्वीकार किये गये।
31 अगस्त 2021 को नदीम उद्दीन एडवोकेट द्वारा पुलिस कांस्टेबिल कपिल कुमार की दावा याचिका (क्लेम पिटीशन) हिन्दी में नैनीताल पीठ में दाखिल की गयी जिसे केस नं0 73/एनबी/डीबी/2021 के रूप में दर्ज किया गया तथा अधिकरण के अध्यक्ष न्यायमूर्ति यू.सी.ध्यानी तथा उपाध्यक्ष राजीव गुप्ता की पीठ ने श्री नदीम व ए.पी.ओ को सुनने के उपरान्त इसे सुनवाई हेतु स्वीकार करते हुये अपने आदेश 02 सितम्बर 2021 से विपक्षीगण को नोटिस जारी करने तथा 6 सप्ताह में लिखित कथन/काउन्टर एफिडेविट के दाखिल करने का आदेश दिया गया तथा केस में अगली तिथि 25 अक्टूबर 2021 लगायी गयी।