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मेलिया डबिया में आधुनिक अनुसंधान’ पुस्तक का विमोचन 

देहरादून। भारतीय वानिकी एवं शिक्षा परिषद के महानिदेशक अरूण सिंह रावत द्वारा ‘मेलिया डबिया में आधुनिक अनुसंधान’ पुस्तक का विमोचन किया गया। यह पेड़ ड्रैक या गोरा नीम के नाम में जाना जाता है तथा एक स्वदेशी-छोटी आवर्तन-बहुउद्देशीय पेड़ की प्रजाति है। इसमें औद्योगिक और घरेलू लकड़ी की आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता है। महानिदेशक ने खुशी जताई कि स्वदेशी पेड़ की प्रजाति पर एक काफी व्यापक पुस्तक लिखी गई है। पुस्तक विशुद्ध रूप से आईसीएफआरई द्वारा वित्त पोषित एक दीर्घकालिक बहुआयामी और व्यवस्थित अनुसंधान कार्यक्रमो के माध्यम से वैज्ञानिकों के प्रयोगों और अनुभव के परिणामों पर आधारित है। यह पेड़ भारत के पूर्वी, उत्तर-पूर्वी और दक्षिणी हिस्सों का मूल निवासी है तथा समुद्र तल से 1800 मीटर तक अलग-अलग मिट्टी और पर्यावरणीय परिस्थितियों में अच्छी तरह से पनपता है। पर्णपाती पेड़ मिट्टी के पुनर्वास में काफी योगदान देता है और साल दर साल मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार लाता है।
व्यवस्थित अनुसंधान कार्यक्रम के तहत आईसीएफआरई ने उत्तरी भारत में व्यावसायिक खेती के लिए दस किस्मों को जारी किया गया है। वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून ने प्रसिद्ध निजी कंपनी आईटीसी के साथ इन उत्पादक किस्मों के वाणिज्यिक प्रवर्धन के लिए हस्ताक्षरित लाइसेंस समझौता किया है। जंगलों से बाहर कृषि वानिकी के तहत लगाए गए पेड़ लकड़ी आधारित उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति का एकमात्र स्रोत हैं। इसलिए मेलिया डबिया को औद्योगिक और घरेलू लकड़ी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक उपयुक्त स्वदेशी वृक्ष के रूप में अनुशंसित किया गया है। यह भी एक तथ्य है कि भारत हर साल विभिन्न देशों से लिबास मुखावरण का आयात करता है। एग्रोफोरेस्ट्री के तहत इस प्रजाति को बढ़ावा देने से इस बोझ को काफी हद तक कम करने में मदद मिलेगी। किसानों को उच्च उत्पादकता के कारण बढ़ी हुई आय प्राप्त होगी तथा लकड़ी आधारित उद्योगों के लिए गुणवत्ता वाले कच्चे माल की उपलब्धता सुनिश्चित होगी।
पुस्तक को आईसीएफआरई के दो पेशेवर वैज्ञानिकों डॉ. अशोक कुमार और डॉ. गीता जोशी द्वारा संपादित किया गया है, जो क्रमशः देहरादून स्थित वन अनुसंधान संस्थान और आईसीएफआरई मुख्यालय में कार्यरत हैं। पुस्तक को डॉ. सुधीर कुमार, उप महानिदेशक (विस्तार), आईसीएफआरई के नेतृत्व और संरक्षण में लिखा गया है तथा भारत भर के विभिन्य वैज्ञानिक एवं विशेषज्ञों ने पुस्तक में विभिन्न अध्याय लिख कर अपना योगदान दिया हैं। पुस्तक में खेती से लेकर आनुवांशिकी, वृक्ष सुधार, सिल्विकल्चर, जैव प्रौद्योगिकी, प्रजनन तथा लकड़ी विश्लेषण के उपयोग की विशेषताएं शामिल हैं। पुस्तक में लकड़ी, प्लाईवुड और लुगदी सहित विभिन्न लकड़ी आधारित उद्योगों के लिए कच्चे माल के रूप में इस प्रजाति को स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका बताई गई है।
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