देहरादून। राज्य के लिए नासूर बन चुके पलायन के मुद्दे पर राज्य गठन के बाद से जितनी बातें हो चुकी हैं, अगर इसका कुछ प्रतिशत भी जमीन पर काम हो गया होता तो पहाड़ खाली नहीं होते। उत्तराखंड ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग भी इस मुद्दे पर सरकार को तमाम सुझाव दे चुका है लेकिन हकीकत यह है कि जब तक पहाड़ में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं जुटाई जाएंगी, तक तक पहाड़ों से पलायन नहीं रुकेगा।
राज्य में पलायन की स्थिति देखें तो अपने गठन से लेकर अब तक 1702 गांव पूरी तरह से खाली हो चुके हैं। सैकड़ों गांवों की संख्या ऐसी है, जिनकी आबादी को अंगुलियों पर गिना जा सकता है। खाली होते गांवों के कारण राज्य में 77 हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि बंजर पड़ी है। अगर गैर सरकारी आंकड़ों की नजर से देखें तो यह एक लाख हेक्टेयर अधिक बैठता है। ऐसे में राज्य में पलायन के सवाल में ही इसका जवाब भी छिपा है, लेकिन राज्य के नीति नियंताओं को यह दिखाई नहीं देता है। कोरोनाकाल में तमाम प्रवासी इस संकल्प के साथ अपने गांवों की ओर लौटे थे कि वह अब वापस नहीं जाएंगे लेकिन राज्य में फैली बेरोजगारी ने आखिरकार उसके कदम फिर से वापस मोड़ दिए।