देहरादून। पूरी दुनिया में एक कथित विमान दुर्घटनाग्रस्त की अफवाह फैल गई, कि जापान के थाय हुको में विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई। लेकिन सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु के बारे में यह समाचार बिल्कुल भी प्रामाणिक नहीं थी। 1956 में तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सहजराज हुसैन की अध्यक्षता में पहला आयोग गठित किया गया था। लेकिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बड़े भाई सुरेश चंद्र बोस ने कमीशन की रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया और इस रिपोर्ट अपनी असहमति व्यक्त की। नेताजी के चाहने वालो की मांग पर 1977 एक अन्य आयोग की स्थापना तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश जीडी खोसला की अध्यक्षता में की। लेकिन जीडी खोसला आयोग की रिपोर्ट को मंत्रिमंडल और तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने संसद में खारिज कर दी।
जायदीप मुखर्जी जनरल सेक्रेट्री ऑल इंडिया लीगल एड फोरम सदस्य, इंटरनेशनल काउंसिल काउंसिल ऑफ जूरिस्ट्स का कहना है कि
वर्ष 1988 में जब भारत सरकार ने नेताजी को मरणोपरांत भारत रत्न देने का निर्णय लिया, तब देश में नेताजी के चाहने वालांे ने यह विरोध जताया कि पिछली दो रिपोर्टों को अस्वीकार करने के बावजूद, सरकार कैसे नेताजी को मरणोपरांत भारत रत्न दे सकती है। कलकत्ता उच्च न्यायालय में पीआईएल याचिका दायर की गई और कलकत्ता उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने 18 अगस्त 1945 कोनेताजी की कथित गुमशुदगी की जांच के लिए सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति मनज के मुखर्जी की अध्यक्षता में एक आयोग गठित करने का आदेश दिया। जायदीप मुखर्जी का कहना है कि
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के संबंध में शीर्ष गुप्त 41 फाइलों को जल्द से जल्द गुप्त सूची से हटाया जाये, ताकि वास्तविक सच्चाई पता चले। इसके अलावा, केंद्र सरकार को रूस की ओम्स सिटी में साइबेरिया जेल में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत के बारे में केजीबी फाइलों का खुलासा करने के लिए राजनयिक तरीके से रूसी सरकार को एक पत्र भेजना चाहिए। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में आजाद हिंद फौज और सुभाष चंद्र बोस के योगदान को स्कूल और कॉलेज के सिलेबस में ठीक से प्रकाशित किया जाना चाहिए। ऑल इंडिया लीगल एड फोरम केंद्र सरकार से 23 जनवरी को नेताजी के जन्मदिन को पूरे भारत में राष्ट्रीय अवकाश घोषित करने की भी मांग करता है। ऑल इंडिया लीगल एड फोरम केंद्र सरकार से आजाद हिंद फौज की संपत्ति और पैसा कहा है इस सच्चाई का खुलासा करने की भी मांग करता है (संपत्ति की कुल राशि उस वक्त बहत्तर करोड़ रुपये थी) इस सच्चाई का खुलासा करने के लिए एक उच्च स्तरीय न्यायिक आयोग का गठन किया जाना चाहिए।
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