उत्तराखण्ड

मेडीकल फीस मामला: करो या मरो के मूड में छात्र, रात को भी डटे रहे धरनास्थल पर

(सुरेन्द्र अग्रवाल द्वारा)
देहरादून। उत्तराखण्ड के तीन निजी मेडीकल कालेजों में कालेज प्रशासन द्वारा फीस में चार गुना से अधिक बढ़ोत्तरी के मामले में प्रभावित होने वाले छात्र-छात्राओं करो या मरो के मूड में आ गई। स्टूडेन्ट इस अन्याय के विरोध में रात को भी घटनास्थल पर मजबूती से डटे रहे।
मेडीकल छात्र-छात्राओं के साथ हो रही इस खुली लूट के प्रयास का सर्वाधिक निन्दनीय पहलू यह है कि भाजपा तो कालेज प्रशासन की गोद में बैठ गई परन्तु विपक्षी पार्टियों में कांग्रेस, यूकेडी, सपा, बसपा सभी ने खामोशी ओढ़ रखी है।

सरकार की मिलीभगत का आरोप- अभिभावक संघ के संयोजक रवीन्द जुगरान ने अपनी ही पार्टी भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार पर करारा हमला किया है। उनका खुला आरोप है कि हाईकोर्ट में स्टूडेन्ट, कालेज व उत्तराखण्ड सरकार कुल तीन पक्षकार हैं ऐसा स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि सरकार व कालेज में इस मुददे पर सांठगांठ हो गई है।

सुप्रीम कोर्ट तक जाने का ऐलान- आन्दोलन की अगुआई कर रहे रवीन्द्र जुगरान ने ऐलान किया है कि 8-10 दिन में पहले हाईकोर्ट फिर यदि जरूरत पड़ी तो सुप्रीम कोर्ट तक जायेंगे परन्तु स्टूडेन्टों का अहित नहीं होने देंगे।

आत्महत्या की स्थिति तक जाने को मजबूर– पांच लाख से बढ़ाकर 19 लाख 76 हजार शिक्षण शुल्क व मय मैस आदि को मिला 24 लाख 25 हजार जैसी राशि प्रति वर्ष निर्धारित किये जाने पर कई अभिभावकों को यहां तक कहना पड़ा कि बच्चे का भविष्य बर्बाद होने पर अगर यथोचित निर्णय नहीं लिया गया तो उनके पास आत्महत्या के अलावा कोई मार्ग शेष नहीं रहेगा।

भाजपा ने अन्डरटेकिंग का दिया हवाला- सत्तारूढ़ पार्टी व मेडीकल कालेज प्रशासन के मध्य मिलीभगत का स्पष्ट प्रमाण उस समय मिला जब एक चैनल की लाईव डिबेट में भाजपा का पक्ष रखने वाली मधु भट्ट ने दो टूक कह दिया कि जब स्टूडेन्टों ने हाईकोर्ट के निर्देश पर शपथपत्र के माध्यम से अन्डरटेकिंग दी है तो स्टूडेन्ट उसका पालन करें।

शासनादेश तक जारी नहीं- इस मामले में एक वैधानिक सवाल यह भी सामने आया है कि मंत्रीमण्डल के जिस फैसले के आधार पर कालेज प्रशासन ने छात्र-छात्राओं को फीस जमा करने का नोटिस तक जारी कर दिया है उस फैसले का अभी कोई शासनादेश तक जारी नहीं हुआ है फिर कालेज प्रशासन केवल अखबारी रिपोर्ट के आधार पर ही नोटिस जारी कैसे करने लगे।

केवल अमीर घरानों के स्टूडेन्ट ही बन पायेंगे डाक्टर- यदि मेडीकल फीस को तर्क संगत न बनाया गया तो निम्न व मध्यम वर्ग के छात्र अच्छे अंक लाकर भी डाक्टर नहीं बन पायेंगे क्योंकि ऐसे लोग 5 साल के कोर्स पर अनुमानित एक करोड़ 25 लाख रूपये कहां से एकत्रित कर पायेंगे। एक तो शिक्षा ऋण तकरीबन 11.5 प्रतिशत वार्षिक ब्याज पर अधिकतम सात लाख 50 हजार तक मिलता है उससे अधिक लोन बगैर सम्पत्ति को धरोहर रखे नहीं मिल सकता है।

भाजपा की सहयोग निधि से है सम्बन्ध- भाजपा ने कुछ समय पूर्व आजीवन सहयोग निधि के नाम पर भारी भरकम धनराशि एकत्रित की है। सूत्रों का दावा है कि निजी मेडीकल कालेजों से मोटी रकम इसी शर्त पर ली गई थी कि फीस तय करने का अधिकार कालेजों को दिया जायेगा।

सीट छोड़ने पर देनी होगी चार वर्ष की फीस- इस मामले में छात्रों के सामने इधर कुआं तो उधर खाई वाली स्थिति है। यदि वे अण्डरटेकिंग के आधार पर बढ़ी फीस देते हैं तो 24 लाख 25 हजार प्रतिवर्ष कहां से लायेंगे और यदि सीट छोड़ते हैं तो चार वर्ष की फीस लगभग 79 लाख रूपये अदा करने पड़ेंगे।

इस संदर्भ में इतना तय है कि त्रिवेन्द्र सरकार समय रहते तर्कसंगत व सर्वमान्य फीस ढांचा तय करे अन्यथा की स्थिति में किसी छात्र या अभिभावक ने हताशा में कोई अप्रिय कदम उठा लिया या न्यायालय ने अपना हन्टर चला दिया तो मुंह छुपाने की जगह भी नहीं मिलेगी।

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