स्टार कास्ट: सुशांत सिंह राजपूत, सारा अली ख़ान, नितीश भारद्वाज आदि।
निर्देशक: अभिषेक कपूर
निर्माता: अभिषेक कपूर और रोनी स्क्रूवाला
केदारनाथ फ़िल्म की जब घोषणा हुई तब कहीं एक उम्मीद जागी कि भारतीय सिनेमा ने भारतीय परिपेक्ष्य में भी प्राकृतिक आपदाओं पर एक पूरी फ़िल्म बनाने की हिम्मत दिखाना शुरू कर दी है। इस भीषण हादसे में न सिर्फ कई घरों को उजाड़ा था साथ ही कई परिवार भी इसके साथ बर्बाद हो गए। लगभग सत्तर हजार लोगों का अब तक भी कोई पता नहीं।
ऐसा कहा गया था कि इसी त्रासदी पर फ़िल्म ‘केदारनाथ’ आधारित है। मगर कुल मिलाकर मामला टोटल फ़िल्मी निकला! एक बोझिल सी प्रेम कथा जिसे देखना पहाड़ पर चढ़ने जितना ही थकाऊ था और अंत में बच्चों के कार्टून चैनल्स के ग्राफिक्स को टक्कर देते विज़वल इफेक्ट्स और फ़िल्म खत्म हो जाती है। ये कहानी है मंसूर और मुक्कू यानी मंदाकिनी की प्रेम कहानी की। ज़ाहिर तौर पर इनका विरोध होना ही था, मार-पीट होती है, गरीब मां खुद पे घासलेट छिड़ककर प्रेमिका या मां में से किसी एक को चुनने की शर्त रख देती है, मगरूर बेटी के सामने मजबूर बाप कहता है कि- ‘आज के बाद मुझे अपना चेहरा मत दिखाना’। और इसी प्रेम कहानी के चलते-चलते बाढ़ आ जाती है।
अभिनय की बात करें तो सारा अली ख़ान की डेब्यू फ़िल्म भले उतनी दमदार न हो लेकिन, सारा अली ख़ान के रूप में बॉलीवुड को एक अभिनेत्री ज़रूर मिल गयी है। सुशांत सिंह राजपूत एक समर्थ अभिनेता के तौर पर लगातार अपने आप पर काम करते साफ़ नज़र आते हैं। मगर मसाले कितने ही शानदार हो उसको सही अनुपात में नहीं डाला जाएगा तो बिरयानी बेस्वाद ही बनेगी! ‘काय पो चे’ में कच्छ के भूकंप का इस्तेमाल करने वाले अभिषेक कपूर ने इस बार केदारनाथ की बाढ़ का इस्तेमाल ज़रूर किया मगर कमजोर कहानी, धीमी रफ़्तार और अधपके विज़ुअल इफेक्ट्स ने केदारनाथ पर पानी फेर दिया!
जागरण डॉट कॉम रेटिंग: पांच (5) में से दो (2) स्टार
अवधि: 2 घंटा 25 मिनट