देहरादून। सरकारी दफ्तरों पर ऊर्जा निगम का करोड़ों रुपये बिजली बिल बकाया है। आम उपभोक्ताओं पर बिल भुगतान को लेकर दिखाई जाने वाली ऊर्जा निगम की सख्ती इन विभागों के आगे नजर नहीं आती है। हाल यह है कि महीने-दर-महीने इन विभागों का बिल बढ़ता ही जा रहा है। ऊर्जा निगम के अधिकारी भी मानते हैं कि सरकारी संस्थानों से बिल वसूलना टेढी खीर है।
बिजली बिल के भुगतान के मामलों को लेकर ऊर्जा निगम आम उपभोक्ताओं के प्रति सख्त रवैया अपनाता है। तय समय पर बिल जमा न होने पर कुछ दिन बाद ही निगम उनका कनेक्शन काट देता है। वहीं, सरकारी कार्यालयों के लिए उसकी मेहरबानी ऐसी है कि भले ही बिल लाखों-करोड़ों में पहुंच जाए और वर्षों से भुगतान न हो रहा हो फिर भी उनकी बिजली लाइन काटने की हिम्मत ऊर्र्जा निगम नहीं जुटा पाता।
दून के ही सरकारी दफ्तरों की बात करें तो यहां सचिवालय, विधानसभा, स्पोट्र्स कॉलेज, शिक्षा विभाग, पेयजल निगम, जलसंस्थान सहित तमाम सरकारी विभागों पर निगम का करोड़ों रुपये तक का बिल बकाया है।
सचिवालय, विधानसभा सहित कईं ऐसे सरकारी संस्थान हैं, जिनका बिजली का बिल करोड़ों रुपये बकाया पड़ा है, लेकिन निगम हर बार महज नोटिस भेजने तक ही सीमित रहता है।
हैरत की बात तो यह है कि ऊर्जा निगम की जो डिफॉल्डर लिस्ट है, उसमें अधिकांश सरकारी विभाग हैं। चाहे वह पांच किलोवाट क्षमता से कम वाले कनेक्शन का हो या पांच किलोवाट से क्षमता से अधिक वाले कनेक्शन। निगम अधिकारी खुद भी मानते हैं कि सरकारी दफ्तरों से बिजली का बिल वसूलना टेढ़ी खीर है।
यह है मुख्य सरकारी विभागों का हाल
सरकारी संस्थान—————–बकाया
सचिवालय———————-2.65 करोड़ रुपये
विधानसभा———————1.030 करोड़
विधायक निवास—————1.59 करोड़
योजना भवन——————85.35 लाख
डिफाल्टर में अधिकांश सरकारी विभाग
ऊर्जा निगम के प्रबंध निदेशक बीसीके मिश्रा के अनुसार ऊर्जा निगम की ओर से समय से बिल का भुगतान न करने वाले उपभोक्ताओं को डिफॉल्टर घोषित किया गया है। इसमें अधिकतर सरकारी विभाग हैं। डिफॉल्टरों को नोटिस भेजे जाते हैं। कार्रवाई न करना निगम की मजबूरी है।