(UK Review )पैठाणी।उत्तराखंड में पैठाणी के मंदिर में सदियों से राहू की पूजा होती आ रही है। पूरे भारत वर्ष में यहां राहू का एकमात्र प्राचीनतम मंदिर स्थापित है। यह मंदिर पूर्वी और पश्चिमी नयार नदियों के संगम पर स्थापित है। कोटद्वार से लगभग 150 किलोमीटर दूर थलीसैण ब्लॉक के पैठाणी गांव में स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन के दौरान राहू ने देवताओं का रूप धरकर छल से अमृतपान किया था तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शनचक्र से राहू का सिर धड़ से अलग कर दिया, ताकि वह अमर न हो जाए। कहते हैं, राहू का कटा सिर इसी स्थान पर गिरा था। जहां पर राहू का कटा हुआ सिर गिरा था वहां पर मंदिर का निर्माण किया गया और भगवान शिव के साथ राहू की प्रतिमा की स्थापना की गई। इस प्रकार देवताओं के साथ यहां दानव की भी पूजा होने लगी। वर्तमान में यह राहू मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। धड़ विहीन की राहू की मूर्ति वाला यह मंदिर देखने से ही काफी प्राचीन प्रतीत होता है। इसकी प्राचीन शिल्पकला अनोखी और आकर्षक है। पश्चिममुखी इस प्राचीन मंदिर के बारे में यहां के लोगों का मानना है कि राहू की दशा की शान्ति और भगवान शिव की आराधना के लिए यह मंदिर पूरी दुनिया में सबसे उपयुक्त स्थान है।
पश्चिम की ओर मुख वाले इस प्राचीन मंदिर के गर्भगृह में स्थापित प्राचीन शिवलिंग व मंदिर की शुकनासिका पर शिव के तीनों मुखों का अंकन है। मंदिर के शीर्ष पर अधर्म पर धर्म की विजय के प्रतीक रूप में गज व सिंह की स्थापना की गई है। मुख्य मंदिर के चारों कोनों पर स्थित मंदिरों के शिखर क्षितिज पट्टियों से सज्जित हैं। साथ ही मंदिर की तलछंद योजना में वर्गाकार गर्भगृह के सामने अंतराल की ओर मंडप का निर्माण किया गया है। मंदिर की दीवारों के पत्थरों पर आकर्षक नक्काशी की गई है, जिनमें राहु के कटे हुए सिर व सुदर्शन चक्र उत्कीर्ण हैं। इसी कारण मंदिर को राहु मंदिर नाम दिया गया। मंदिर के बाहर व भीतर देवी-देवताओं की प्राचीन पाषाण प्रतिमाएं स्थापित हैं। “स्कंद पुराण” के केदारखंड में वर्णन है कि राष्ट्रकूट पर्वत पर पूर्वी व पश्चिमी नयार के संगम पर राहु ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। इसी कारण यहां राहु के मंदिर की स्थापना हुई और राष्ट्रकूट पर्वत के नाम पर ही यह “राठ” क्षेत्र कहलाया। साथ ही राहु के गोत्र “पैठाणी ” के कारण इस गांव का नाम “पैठाणी” पड़ा। पैठाणी मंदिर के बारे में सारी जानकारी हमें स्कंद पुराण में मिलती है। राष्ट्रकूट पहाड़ पर राहु ने भगवान सदा शिव के लिए कड़ी तपस्या की। इसी वजह से यह इलाका राठ कहलाया गया और इस जगह पर राहु का मंदिर बना। राहु का गोत्र पैठाणी था जिस वजह से इस जगह का नाम पैठाणी रखा गया। एैसा बताया गया है कि यह मंदिर कई लाख सालों पहले यहां पर बना। और यही वजह है कि इतने पुराने मंदिर को देखने के लिए विदेशी पर्यटक भी पैठाणी आते हैं। इस मंदिर के बाहर हाथी और शेर की प्रतिमा है जो बहुत ही पुरानी और अनोखी है।