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कोरोना कालः अल्मोड़ा की प्रसिद्ध बाल मिठाई वाले भी सब्जी बेचने को मजबूर

अल्मोड़ा। सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा की बड़ी पहचान यहां की बाल मिठाई भी है। अल्मोड़ा आने वाले पर्यटक यहां से पहचान के रूप में बाल-मिठाई, सिंगौड़ी और चॉकलेट जरूर अपने लिए और अपनों के लिए ले जाते थे लेकिन कोरोना संक्रमण से सब-कुछ बदल कर रख दिया। सदियों से चर्चित बाल मिठाई के कारोबारियों को भी दो जून की रोटी मुहैया नहीं हो पा रही है और नतीजा यह है कि वह बाल मिठाई, सिंगौड़ी, चॉकलेट के स्थान पर आलू, लौकी, खीरा और शिमला मिर्च बेच रहे हैं। इतना ही नही लोग बनारसी साड़ी की जगह पहाड़ी मंडुवा, कश्मीरी साड़ी की जगह पहाड़ी कद्दू और जयपुरी साड़ी की जगह पहाड़ के केले बिक रहे हैं।
मिठाई बिक्रेता बृजेश कहते हैं कि उन्होंने तीन महीने तक इंतजार किया कि उनका काम शुरु होगा लेकिन कोई भी ग्राहक बाजार में न होने से बनी हुई मिठाई बर्बाद ही हो रही थी। उन्हें दुकान का किराया भी देना था और घर का खर्चा भी चलाना था। फिर सोचा कि सब्जी ही बेची जाए जिससे दुकान का किराया तो निकलेगा. फिर सब्जी बच गई तो घर में भी इस्तेमाल हो जाएगी। नरेन्द्र चैहान अल्मोड़ा की मॉल रोड़ पर साड़ियां बेचते थे। वह देश के अलग-अलग राज्यों की साड़ी बेचते थे। शादी विवाह के समय तो दुकान में काफी भीड़ लगी रहती थी। पिछले 4 महीनो से पर्यटकों की आवाजाही शून्य है और शादी विवाह भी नहीं हो रहे। घर चलाने के लिए चैहान को भी नया काम शुरु करना पड़ा। प्रसिद्ध साड़ी विक्रेता की दुकान में कश्मीरी साड़ी की जगह पहाड़ी मंडुवा, बनारसी साड़ी की जगह पहाड़ी कद्दू और जयपुरी साड़ी की जगह पहाड़ी केलों ने ले ली। तीन महीने तक इंतजार के बाद व्यापारियों ने अपने पारम्परिक व्यापार को बदलना ही उचित समझा। बाल मिठाई भल ही अब प्रदेश भर में और दिल्ली जैसे महानगरों में भी मिलने लगी है लेकिन इसकी पहचान अल्मोड़ा से ही है। अल्मोड़ा गए और बाल मिठाई नहीं लाए तो आपके दोस्त आपसे बात नहीं करते थे।

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