देहरादून। प्रतिज्ञा कैंपेन की नई कानूनी रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में भारतीय उच्च न्यायालयों में बहुत अधिक संख्या में गर्भपात मामले दर्ज कराए जा रहे हैं। ‘सुरक्षित गर्भपात सेवा प्राप्त करने के विषय में न्यायपालिका की भूमिका का विश्लेषण नामक रिपोर्ट में मई 2019 से अगस्त 2020 के बीच गर्भपात हेतु अनुमति का निवेदन करने वाले मामलों का विश्लेषण किया गया है। भारत के 14 उच्च न्यायालयों में कुल 243 मामले दर्ज कराए गए और सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक अपील दर्ज कराई गई। 84 प्रतिशत मामलों में गर्भपात कराने के विषय में मंजूरी प्रदान की गई।
कुल मामलों में से 74 प्रतिशत मामले 20 हफ्तों की गर्भावस्था पूरी होने के बाद दर्ज कराए गए थे, कुल मामलों में से 23 प्रतिशत मामले 20 हफ्तों की गर्भावस्था पूरी होने से पहले दर्ज कराए गए थे लेकिन ऐसे मामलों को न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की जरूरत नहीं थी। 74 प्रतिशत मामलों (20 हफ्तों की गर्भावस्था पूरी होने के बाद दर्ज कराए गए) में से 29ः मामले बलात्कारध्यौन शोषण से संबंधित थे, 42 प्रतिशत मामले रोगग्रस्त भ्रूण से संबंधित थेय और 23 प्रतिशत मामलों (20 हफ्तों की गर्भावस्था पूरी होने से पहले दर्ज कराए गए) में से 18 प्रतिशत मामले यौन शोषण, बलात्कार से संबंधित थे और 6 प्रतिशत मामले भ्रूण के रोगग्रस्त हो जाने के कारण गर्भपात कराना चाहते थे। भारत के कानूनी पहलू और अध्ययन से मिले परिणामों के विषय में टिप्पणी करते हुए प्रतिज्ञा कैंपेन के एडवाइजरी ग्रुप की सदस्य और रिपोर्ट की लेखिका अनुभा रस्तोगी कहती हैं, “इन मामलों में आई बढ़ोतरी इसी बात की ओर इशारा करती है कि देश में वैध गर्भपात सेवाओं की काफी कमी है। यह आवश्यक है कि इन बढ़ते प्रचलनों को ध्यान में रखते हुए कानून में परिवर्तन लाए जाए जिनसे अधिकारों पर आधारित, सभी को शामिल करने वाले गर्भपात संबंधित सुलभ कानून बने। कोई भी नया कानूनध्संशोधन मेडिकल बोर्ड जैसे तीसरे पक्ष द्वारा स्वीकृति पर आधारित नहीं होना चाहिए और पंजीकृत सेवा प्रदाता और गर्भवती महिला द्वारा लिए गए निर्णय को सम्मान के नजरिए से देखने वाला होना चाहिए।”
रिपोर्ट लॉन्च के दौरान, प्रतिज्ञा कैंपेन के कैंपेन एडवाइजरी ग्रूप के सदस्य वी.एस. चन्द्रशेकर ने इस ओर अपना पक्ष रखते हुए कहा, “यह बहुत ही दुःख की बात है कि गर्भपात कराने के लिए ऐसी गर्भवती महिलाओंध्लड़कियों को भी न्यायालय के पास जाना पड़ रहा है जिनकी गर्भावस्था 20 हफ्तों से कम की है। एमटीपी अधिनियम 20 हफ्तों से कम अवधि वाली गर्भावस्था के गर्भपात कराने की स्वीकृति देती है। 20 हफ्तों से कम अवधि वाली गर्भावस्थाएं ज्यादातर यौन शोषण के परिणाम हैं और इस प्रकार न्यायालय में मामला दर्ज कराने की प्रक्रिया ऐसी महिलाओंध्लड़कियों की तकलीफ और भी बढ़ाता है।”लॉकडाउन के दौरान, गर्भपात सेवा प्राप्त करना और भी ज्यादा मुश्किल हो गया था। हालांकि, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा गर्भपात सेवा को जरूरी सेवा घोषित करते हुए इसे जारी रखने की खबर से कुछ राहत मिली। लॉकडाउन के दौरान विभिन्न न्यायालयों में 112 मामलों की सुनवाई हुई और इनमें से 62 मामले बॉम्बे उच्च न्यायालय से थे। यह रिपोर्ट इस बात को रेखांकित करती है कि बदलते समय और हालातों के अनुसार कानून में परिवर्तन लाना कितना जरूरी हो गया है। एमटीपी संशोधन विधेयक 2020 राज्य सभा से स्वीकृति की प्रतीक्षा कर रहा है और नागरिक समाज संगठनों ने इसमें कुछ बदलाव सुझाए