ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने आधुनिक कालीन हिन्दी साहित्य का प्रथम चरण जिसे भारतेन्दु युग कहा गया, के सर्वश्रेष्ठ नाटककार भारतेंदु हरिश्चंद्र की पुण्यतिथि पर उनकी साहित्य साधना को नमन करते हुये कहा कि लेखक भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हिन्दी साहित्य के इतिहास में विलक्षण परिर्वतन किया। जब देश में सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिवर्तनों हो रहे थे उस समय उन्होंने नई परम्पराओं का सृजन कर एक नया दृष्टिकोण दिया। भारतेंदु हरिश्चंद्र जी ने गद्य साहित्य को एक मधुर मोड़ प्रदान किया। उन्होंने पूरा जीवन साहित्य के माध्यम से जनमानस को एक नई सोच देने और जागृत करने का कार्य किया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि हमारा साहित्य, रचनायें और कवितायें ऐसी हो जो हमारी युवा पीढ़ी को भारत की गौरवशाली संस्कृति, सभ्यता और मानवीय मूल्यों से जोडें तथा हमारी धार्मिक और सामाजिक परम्पराओं का सही और स्पष्ट स्वरूप व्यक्त करें क्योंकि साहित्य समाज के नवजागरण का प्रमुख आधार होता है। स्वामी ने कहा कि मानव जीवन के अस्तित्व के साथ ही भारतीय साहित्य और संस्कृति ने सम्पूर्ण मानवता को जीवन के अनेक श्रेष्ठ सूत्र दिये। वर्तमान समय में हमें ऐसे साहित्य का सृजन करना होगा जो हमारी युवा पीढ़ी को हमारे मूल और मूल्यों से जुड़ना सिखाये। ऐसा साहित्य जिससे न केवल जीवन व्यवस्थित हो बल्कि उससे ‘आत्मिक और आध्यात्मिक उन्नति भी हो सके।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि साहित्य के माध्यम से ही हम आने वाली पीढ़ियों को हमारे प्राचीन गौरवशाली सूत्र, सिद्धान्त एवं परंपराओं के विषय में जानकारी दें सकते हैं। भारतीय संस्कृति और सभ्यता को जानने के लिये हमें अपने शास्त्रों को पढ़ना होगा, वेदोंय उपनिषदों, पुराणों जानना, जुड़ना और समझना होगा। हमारे शास्त्र और साहित्य हमारी सबसे बड़ी संपत्ति और धरोहर है। भारतीय साहित्य और संस्कृति से जुड़ कर ही आज की युवा पीढ़ी अपनी जडें मजबूत कर सकती है। ऋषियों ने कई वर्षों तक एकांतवास में रहकर अपने जीवन के अनुभव, प्रामाणिकता और अनुसंधान के आधार पर जीवन मूल्यों का निर्माण शास्त्रों और साहित्य के रूप में उसे सूत्रबद्ध किया।