वन विभाग ने मुख्य वन सरंक्षक डॉ पराग को बनाया सोशल मीडिया प्रभारी
वनाग्नि पर छप रही आपत्तिजनक व भ्रामक पोस्ट – जयराज
तथ्यों के साथ खंडन किया जाएगा सोशल मीडिया की विवादित पोस्ट का
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वरिष्ठ पत्रकार अविकल थपलियाल की कलम से
देहरादून। उत्तराखंड के जंगलों में लग रही आग को वन विभाग कब और कैसे बुझा पायेगा। यह तो पता नही। लेकिन इस आग को लेकर सोशल मीडिया में छप रही खबरों से वन विभाग काफी आग बबूला दिख रहा है।
इन खबरों से चिंतित प्रमुख वन संरक्षक (हॉफ) ने विभाग के उच्चाधिकारी डॉ पराग मधुकर धकाते को सोशल मीडिया प्रभारी बनाया है। पराग जी ही अब इस प्रकार की भ्रामक खबरों को बेपर्दा करेंगे। बुधवार 27 मई के आदेश में सभी वनाधिकारियों को विभाग के नए सोशल मीडिया प्रभारी मुख्य वन सरंक्षक पराग जी के सम्पर्क में रहने को कहा गया है।
जयराज जी का कहना है कि वनाग्नि काल में सोशल मीडिया में विदेश के जंगलों की फ़ोटो को उत्तराखंड का बता दिया जाता है। उन्होंने कहा कि कतिपय तत्व विवादित स्थिति पैदा करने की कोशिश में लगे रहते हैं। यह बहुत ही आपत्तिजनक है। जयराज जी कहते हैं कि सोशल मीडिया में भ्रामक व आपत्तिजनक पोस्ट डाली जाती हैं।लोग इन पोस्ट पर विश्वास भी कर लेते हैं। ऐसी भ्रामक पोस्ट का तथ्यों के साथ विनम्रता पूर्वक खंडन किया जाएगा। यह भी सच है वनाग्निकाल फरवरी से शुरू हो जाता है। इस दौरान उत्तराखंड के जंगलों में लगने वाली आग से करोड़ों की वन सम्पदा जलकर खाक हो जाती है। इसके अलावा स्थानीय ग्रामीण भी आग में झुलस कर जान गंवा बैठते हैं।
वन विभाग वनाग्नि पर कई कार्यशाला भी आयोजित करता रहा है। लेकिन इन कार्यशालाओं के नतीजों पर कितना अमल हो पाता है। यह भी किसी से छुपा नही है। वन विभाग, ग्रामीणों व हजारों वन पंचायतों के बीच तालमेल न होना भी गंभीर मुद्दा बना हुआ है। कड़े वन कानूनों से स्थानीय ग्रामीणों का अपने ही जंगल पर कोई हक – हुकूक भी नही रह गया है। आवश्यक उपकरणों की कमी भी जंगल की आग बुझाने में एक बड़ी बाधा है। नतीजतन इंद्र देव की फुहार व बौछार ही उत्तराखंड के जंगलों की आग बुझाने में टार्जन की भूमिका निभाती है। 2016 में लगी आग में 54 हजार हेक्टयर से अधिक वन खाक हो गए थे। उत्तराखंड में जंगलों की आग हर साल आपदा बन कर आती है। इस बीच, वन विभाग ने सोशल मीडिया में आ रही फर्जी व भ्रामक खबरों को बेपर्दा करने के लिए कमर कस ली है। कड़े आदेश भी हो गए है। इधर, उत्तराखण्ड के जंगलों से उठ रही लपटों को रोकने के लिए भी वन विभाग जरूर ठोस इंतजाम करने में जुटा होगा।