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पृथ्वी केवल हमारा आश्रय ही नहीं बल्कि अस्तित्व भीः स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश। सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिये इजीनियरिंग कौशल की महत्वपूर्ण भूमिका है इसी को ध्यान में रखते हुये संयुक्त राष्ट्र द्वारा आज के दिन को सतत विकास के लिये विश्व इंजीनियरिंग दिवस के रूप में घोषित किया गया है। आज के दिन का उद्देश्य है कि जलवायु परिवर्तन के संकट से उबरना तथा स्थायी व सतत विकास के लिये संतुलित आधुनिक जीवन शैली को अपनाना। दुनिया में हो रहे भौतिक विकास के लिये इंजीनियर्स का महत्वपूर्ण योगदान है, इसलिये अब एक ऐसी प्रौद्योगिकी को डिजाइन और कार्यान्वित करने की जरूरत है जिससे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी आये तथा सतत विकास लक्ष्यों में वृद्धि हो सके। यूनेस्को के 40 वें सम्मेलन, नवंबर 2019 में सतत विकास के लिए हर साल 4 मार्च को विश्व इंजीनियरिंग दिवस मनाने का संकल्प लिया गया था।
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि दुनिया के भौतिक विकास और मानव कल्याण हेतु इंजीनियरिंग कौशल की एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि इंजीनियर्स की वर्तमान और भावी पीढ़ी नेचर, कल्चर और फ्यूचर को ध्यान में रखते हुये विकास को प्राथमिकता दें ताकि हम सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करते हुये वर्तमान की वैश्विक चुनौतियों का समाधान  करने में सक्षम हो सके है।
स्वामी जी ने कहा कि प्रकृति, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुये एक ऐसा एक्शन फे्रमवर्क तैयार करना होगा जिसमें हमारे जल, वायु, प्रकृति, जलीय और वन्यप्राणी, मिट्टी और नदियां प्रदूषण मुक्त रहे। अब समय आ गया है कि हम हरित अर्थव्यवस्था को ही प्राथमिकता दें। उन्होंने कहा कि हमें यह बात समझना होगा कि पृथ्वी केवल हमारा आश्रय ही नहीं बल्कि अस्तित्व भी है अर्थात पृथ्वी है तो हम हैं। हम, पृथ्वी और प्रकृति सब एक-दूसरे के साथ मजबूती से जुड़ें हुये हैं, हमें अपनी प्रकृति को समझने के लिये पहले प्रकृति को समझना होगा और अपने आप को स्वस्थ रखने के लिये प्रकृति को स्वस्थ रखना होगा।
स्वामी जी ने कहा कि एक वट के पेड़ को गौर से देखें तो उस विशाल  पेड़ पर छोटे-छोटे फल होते हैं और उन फलों को खोल कर देखें तो उसमें नन्हें-नन्हें बीज होते हैं। उन नन्हें बीजों में वट वृक्ष की आगे आने वाली पीढ़ियां समाहित हैं। उस छोटे से बीज में ही वट के विशाल वृघ्क्ष की अनंतता समाहित है परन्तु वह बीज अकेले अपने दम पर वट वृक्ष नहीं बन सकता उसके लिये उसे एक उचित वातावरण, पृथ्वी और पर्यावरण की जरूरत होती है, उसी प्रकार मनुष्य को भी विकास के लिये कई पीढ़ियों का अनुभव और पूर्वजों की विरासत मिली हुई है परन्तु केवल उस अनुभव, ज्ञान और बुद्धि के बल पर विकास नहीं किया जा सकता, जब तक पृथ्वी, प्रकृति, पर्यावरण और हमारी प्राकृतिक विरासत हमारे साथ नहीं है। इसलिये हमारे पास जो प्राकृतिक विरासत है, उसकी सुरक्षा के साथ ही वैश्विक स्तर पर खाद्य सुरक्षा, बेहतर पोषण, स्वास्थ्य सुरक्षा, स्वस्थ जीवन शैली, सतत और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देना नितांत अवश्यक है। आईये आज संकल्प ले कि सतत विकास लक्ष्य ही हमारे विकास का आधार हो।

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