-गीतांजलि भारत के लिये एक वरदानः स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश। प्रसिद्ध बांग्ला कवि, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार, नाटककार, निबंधकार, चित्रकार तथा भारतीय संस्कृति के पुरोधा रवींद्रनाथ टैगोर को उनकी 160 वीं जयंती पर भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित करते हुये स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि रवींद्रनाथ जी ने बंगाली साहित्य एवं संगीत के साथ-साथ 19वीं सदी के अंत एवं 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में भारतीय कला और साहित्य के पुनरुत्थान में महत्वपूर्ण योगदान दिया। नोबल पुरस्कार से सम्मानित रवींद्रनाथ टैगोर की काव्यरचना गीतांजलि भारत के लिये एक वरदान है। उन्होंने भारत के लिये (जन गण मन) और बांग्लादेश (आमार सोनार बांग्ला) का राष्ट्रगान लिखकर सभी भारतीयों के दिलों में एक अमिट छाप छोड़ी है। वे हमेशा से ही मानवता को राष्ट्रवाद से अधिक महत्त्व देते थे। ‘मेरी शरणस्थली मानवता है’ वर्तमान समय में इस विचार की ही सबसे अधिक आवश्यकता है।
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि रवींद्रनाथ टैगोर ने शिक्षा पर बहुत ही श्रेष्ठ विचार व्यक्त किये हैं उनके अनुसार ‘‘शिक्षा छात्रों की संज्ञानात्मक अनभिज्ञता के रोग का उपचार करने वाले तकलीफदेह अस्पताल की तरह नहीं है, बल्कि यह उनके स्वास्थ्य की एक क्रिया है, उनके मस्तिष्क के चेतना की एक सहज अभिव्यक्ति है।’’ ’’श्रेष्ठतम शिक्षा वह है जो न केवल हमें जानकारी प्रदान करती है, अपितु सभी के अस्तित्व के साथ हमारे जीवन का सामंजस्य भी स्थापित करती है।’’ वास्तव में आज हमें ऐसी ही शिक्षा पद्धति की जरूरत है जो बच्चों को जानकारी के साथ नैतिकता और मानवता से जोड़े, उनके हृदय में सहानुभूति, सेवा और बलिदान की भावना विकसित करे तथा सद्भाव, समरसता, शांतिपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण समाज के निर्माण में सहयोग प्रदान करे। सभी को यह ध्यान रखना होगा कि जहाँ तक सम्भव हो हमारे द्वारा मानवता को हानि न पहुँचे। जब तक मानवता जिन्दा रहेगी यह धरा रहेगी। आईये आज गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर जी की जयंती के पावन अवसर पर हम सभी की ओर से उन्हें शत शत नमन। वे एक महान सुधारक और कला प्रेमी थे। उनके अनुसार कला में व्यक्ति खुद को उजागर करता है, कलाकृति को नहीं। वे जीवन के अंतिम पड़ाव तक भी सामाजिक रूप से काफी सक्रिय थे और उन्होंने मानव जीवन के कई पहलुओं पर उत्कृष्ट साहित्य की रचना की। उनकी रचनाओं से जुड़ेंय पढ़ें और अपने जीवन को गढ़े।