–घर जाकर जाना तीनों अस्वस्थ नेतृत्वकारियों का हाल
देहरादून। उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर उत्तरांचल प्रेस क्लब के प्रतिनिधिमंडल ने राज्य निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले तीन प्रमुख नेतृत्वकारियों सुशीला बलूनी, बब्बर गुरुंग व सुभाषिनी बर्त्वाल के घर जाकर उनके स्वास्थ्य का हाल जाना और उनके संघर्षों के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए उन्हें मानपत्र भेंट किया।तीनों पिछले लंबे अरसे से अस्वस्थ हैं और बेड पर हैं।
क्लब के प्रतिनिधि मंडल ने सबसे पहले वयोवृद्ध गोरखा नेता बब्बर गुरुंग से उनके गढ़ी टपकेश्वर मार्ग स्थित आवास पर जाकर भेंट की। साथ ही उन्हें श्संघर्ष नायक रणजीत सिंह वर्मा स्मृति मानपत्रश् भेंट किया। 1971 के भारत पाक युद्ध मे गोलियों की बौछार के बीच घायल होने से एक पैर से दिव्यांग हुए 85 वर्षीय बब्बर गुरुंग उत्तराखंड आंदोलन में बेहद सक्रिय रहे।, आंदोलन में 8 बार जेल यात्रा करने के अलावा दिवंगत चंद्रमणि नौटियाल के साथ दिसम्बर-1985 में देहरादून से नई दिल्ली तक पदयात्रा की और जंतर मंतर पर राज्य निर्माण की मांग को लेकर लंबा अनशन किया। नेपाली भाषा को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए भी उन्होंने लंबा संघर्ष किया था। पिछले 3 साल से अस्वस्थता के कारण वे बेड पर हैं। उनकी पत्नी शकुन गुरुंग भी राज्य आंदोलन में सक्रिय रही।पिछले 2 वर्ष से कैंसर से पीड़ित होने के कारण शकुन भी बेड पर हैं।
प्रतिनिधिमंडल ने इसके पश्चात मसूरी की प्रमुख आंदोलनकारी नेत्री सुभाषिनी बर्त्वाल के चन्द्रलोक कॉलोनी स्थित आवास पर पहुंचकर उनके स्वास्थ्य का हाल जाना। साथ ही राज्य आंदोलन में उनकी उल्लेखनीय भूमिका के लिए उन्हें श्शहीद वीरांगना हंसा धनाई-बेलमती चौहान स्मृति मानपत्रश् भेंट किया। सुभाषिनी उत्तराखंड की एकमात्र ऐसी महिला आंदोलनकारी हैं जिन पर हत्या समेत 14 संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ। वे 2 सितंबर 1994 को मसूरी के झूला घर पर गोलीकांड के वक्त आंदोलनकारी महिलाओं के जत्थे का नेतृत्व कर रही थीं। अन्य 13 आंदोलनकारियों के साथ सुभाषिनी को भी 10 साल तक सीबीआई अदालत में मुकदमा झेलना पड़ा। पिछले कई माह से सुभाषिनी बर्त्वाल गंभीर रूप से अस्वस्थ होने के कारण व्हीलचेयर पर हैं।
प्रतिनिधिमंडल इसके पश्चात उत्तराखंड राज्य आंदोलन की प्रमुख नेत्री 82 वर्षीय सुशीला बलूनी के स्वास्थ्य का हाल जानने उनके डोभालवाला स्थित आवास पहुंचा। बलूनी पिछले कई महीनों से अस्वस्थ्य हैं। इस अवधि में वे 2 बार उन्हें अस्पताल में भर्ती किया जा चुका है। राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष रह चुकी सुशीला बलूनी 1994 के राज्य आंदोलन की पहली महिला अनशनकारी रहीं। 9 अगस्त 1994 को उन्होंने देहरादून कलेक्ट्रेट में गोविंद राम ध्यानी और रामपाल सिंह के साथ आमरण अनशन शुरू किया था। असंख्य बार जेल यात्राएं करने के अतिरिक्त उन्होंने धरना-प्रदर्शन, चक्का जाम व अन्य आंदोलनात्मक गतिविधियों के साथ ही अनशन का नेतृत्व भी किया। वे उत्तराखंड महिला संयुक्त संघर्ष समिति कि केंद्रीय अध्यक्ष रहीं। प्रेस क्लब प्रतिनिधिमंडल ने उन्हें श्पर्वतीय गांधी इंद्रमणि बडोनी स्मृति मानपत्रश् भेंट किया। तीनों को प्रेस क्लब की डायरेक्टरी भी भेंट की गई।
प्रेस क्लब अध्यक्ष जितेंद्र अंथवाल के नेतृत्व में इस प्रतिनिधिमंडल में महामंत्री ओपी बेंजवाल, संयुक्त मंत्री दिनेश कुकरेती व नलिनी गुसाईं, पूर्व अग्ध्यक्ष चेतन गुरुंग और क्लब कार्यालय सहायक सुबोध भट्ट शामिल रहे।