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जलवायु परिवर्तन संकट का सबसे बड़ा बोझ झेल रहे हैं बच्चेः सुमंता  

देहरादून। जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान, अनियमित मौसम, और बाढ़, चक्रवात तथा सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती आवृत्ति दुनियाभर में करोड़ों लोगों को प्रभावित कर रही है, लेकिन इस मानव निर्मित संकट का सबसे बड़ा प्रभाव बच्चों पर पड़ रहा है, जो समाज का सबसे संवेदनशील वर्ग हैं। भारत में, जहां 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों की संख्या 30 प्रतिशत से अधिक है, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव उनके स्वास्थ्य, सुरक्षा और भविष्य की संभावनाओं पर विनाशकारी हैं। यह बात एसओएस चिल्ड्रेन्स विलेजेज इंडिया के सीईओ सुमंता कर ने पृथ्वी दिवस के अवसर पर कही।
जलवायु परिवर्तन और बच्चों की संवेदनशीलता के बीच संबंध पर प्रकाश डालते हुए सुमंता कर ने कहा, “हाशिए पर रह रहे बच्चों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अत्यधिक होता है। पहले से ही गरीबी, कुपोषण और शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं की कमी से जूझ रहे इन बच्चों के लिए जलवायु परिवर्तन की चुनौतियाँ उनके जीवन को और भी असुरक्षित बना देती हैं। हाल के वर्षों में असम और बिहार में बाढ़, तटीय क्षेत्रों में चक्रवात और महाराष्ट्र व राजस्थान में सूखे ने हजारों बच्चों को बेघर कर दिया है, जिससे वे शिक्षा से वंचित हो गए हैं और भूख व बीमारियों के खतरे में आ गए हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “जलवायु आपदाएं जब लाखों लोगों को विस्थापित करती हैं, तो बच्चे अपने घर, समुदाय और कभी-कभी अपने परिवार तक खो बैठते हैं। इस विस्थापन से उनकी शिक्षा बाधित होती है, शोषण का खतरा बढ़ता है और वे खतरनाक श्रम या मानव तस्करी जैसे जोखिमों में फंस सकते हैं। जिन बच्चों ने पहले ही पारिवारिक देखभाल खो दी है, उनके लिए यह प्रभाव और भी गंभीर होता है। स्थिर घर और देखभाल देने वाले का अभाव उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, जिससे दीर्घकालिक भावनात्मक और संज्ञानात्मक समस्याएं उत्पन्न होती हैं।”

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