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धराली आपदा पर केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक सहायता मुहैया न कराए जाना दुर्भाग्य पूर्ण:संदीप चमोली 

 

धराली में आई आपदा के लगभग एक सप्ताह पूरा होने
के बाद भी अब तक केंद्र सरकार द्वारा उत्तराखंड को आर्थिक सहायता की घोषणा नहीं की गई है और ना ही केंद्र सरकार का कोई प्रतिनिधि आपदा की? सही
स्थिति को। देखने उत्तराखंड आया है जहां देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा कुछ समय पहले ही उत्तरकाशी आये थे और उत्तराखंड से अपना
एक आत्मा रिश्ता बताया था प्रधानमन्त्री जी द्वारा अनेकों बार उत्तराखंड दौरा किया गया है हर दौरे में उन्होंने उत्तराखंड को अपना दूसरा घर बताया है और यहां के लोगों से अपना आत्मीय रिश्ता बनाया है इसके बावजूद भी अब तक केंद्र सरकार द्वारा धराली की भीषण आपदा में कोई भी आर्थिक सहायता? प्रदान नहीं की गई है साथ ही साथ अब तक कोई भी केंद्र सरकार का प्रतिनिधि आपदा ग्रस्त स्थानों के दौरे पर नहीं आया है जबकि उत्तराखण्ड पूरे भारतवर्ष में सर्वाधिक प्राकृतिक आपदा ग्रस्त प्रदेश है इसकी पर्वतीय संरचना इसे प्राकृतिक आपदाओं के लिए अत्यधिक संवेदनशील बनाती है
हाल ही में उत्तरकाशी ज़िले के धराली-भराली क्षेत्र में आई भीषण आपदा ने एक बार फिर इस सच्चाई को सामने ला दिया बादल फटने और भारी वर्षा के कारण आई बाढ़ व मलबा प्रवाह ने पूरे क्षेत्र में तबाही मचा दी। मकान, दुकानें, होटल, पुल, सड़कें, खेत और जनजीवन—सब कुछ क्षतिग्रस्त हुआ। कई परिवार उजड़ गए, जान-माल का भारी नुकसान हुआ
धराली और भराली में आई इस आपदा ने न केवल स्थानीय लोगों की आजीविका को समाप्त कर दिया, बल्कि गंगोत्री धाम जाने वाला प्रमुख मार्ग भी बाधित हो गया। सैकड़ों लोग फंसे रहे, कई घर और बाजार बह गए, पर्यटक व तीर्थयात्री भयभीत होकर सुरक्षित स्थानों की तलाश में रहे। सेना, NDRF, SDRF और ITBP ने राहत-बचाव कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, कई लोगों को हेलीकॉप्टर से निकाला गया। फिर भी, मलबा हटाने, सड़क और पुल बहाली, बिजली-पानी जैसी मूलभूत सेवाओं को पुनः चालू करने में भारी मुश्किलें हैं इतनी भीषण आपदा के बाद भी अब तक
केंद्र सरकार की चुप्पी और आर्थिक सहायता का अभाव
इस बड़े पैमाने की तबाही के बावजूद अब तक केंद्र सरकार, विशेषकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, की ओर से कोई प्रत्यक्ष आर्थिक सहायता पैकेज घोषित नहीं किया गया है। न राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (NDRF) से विशेष अनुदान की घोषणा हुई, न ही पुनर्वास के लिए अलग से धनराशि का आश्वासन मिला। यह चुप्पी कई सवाल खड़े करती है—
राज्य की सीमित क्षमता
उत्तराखण्ड की अपनी वित्तीय क्षमता सीमित है। आपदा राहत कार्यों, पुनर्निर्माण, विस्थापितों के पुनर्वास, सड़क-पुल मरम्मत, और किसानों के मुआवज़े में भारी खर्च होता है। राज्य सरकार ने कुछ आर्थिक सहायता की घोषणा अवश्य की है, लेकिन इतने बड़े नुकसान के लिए यह पर्याप्त नहीं है। केंद्र की मदद के बिना पुनर्निर्माण और आजीविका बहाली की प्रक्रिया बेहद धीमी होगी।
संघीय सहयोग की भावना पर प्रश्नचिन्ह
संविधान और आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत केंद्र और राज्य के बीच संकट के समय सहयोग का स्पष्ट प्रावधान है। ऐसे में केंद्र द्वारा कोई आर्थिक सहायता न देना संघीय ढांचे की उस भावना के विपरीत है, जो संकट की घड़ी में एकजुटता और सहयोग पर आधारित है। आपदा किसी एक राज्य का नहीं, पूरे देश का मसला होती है—क्योंकि इसके सामाजिक, आर्थिक और मानवीय परिणाम राष्ट्रीय स्तर पर महसूस किए जाते है

तत्काल आर्थिक पैकेज – केंद्र सरकार को धराली-भराली आपदा के लिए विशेष राहत पैकेज की घोषणा करनी चाहिए जिससे तेज़ पुनर्वास योजना विस्थापितों के लिए अस्थायी आवास, भोजन, चिकित्सा और शिक्षा की तत्काल व्यवस्था हो सके साथ ही साथ
स्थायी आपदा न्यूनीकरण योजना – हिमालयी राज्यों के लिए विशेष आपदा-रोधी बुनियादी ढांचे का विकास हो सके केंद्र सरकार को अपना एक प्रतिनिधिमंडल अविलम्ब उत्तराखंड भेजकर पारदर्शिता से त्वरित आकलन नुकसान के आंकड़े पारदर्शी रूप से पेश किए जाएं, ताकि उचित सहायता तय की जा सके और मृतकों की सही संख्या और पहचान स्पष्ट रूप से सामने आ सके

धराली-भराली आपदा केवल एक प्राकृतिक त्रासदी नहीं, बल्कि हमारे आपदा प्रबंधन तंत्र और केंद्र-राज्य संबंधों की भी परीक्षा है। उत्तराखण्ड ने हमेशा राष्ट्रीय हितों में अपना योगदान दिया है—चाहे सीमाओं की सुरक्षा हो, जल संसाधनों का दोहन हो या पर्यटन-तीर्थाटन से राष्ट्रीय आय में वृद्धि। ऐसे में केंद्र सरकार का नैतिक और संवैधानिक दायित्व है कि वह बिना देरी किए प्रभावित लोगों के पुनर्वास और राहत के लिए आवश्यक आर्थिक सहायता प्रदान करे।

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