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2660 करोड़ गटक गये पेयजलकर्मी, पेयजल निगम ने आठ साल तक लूटा जनता का धन

देहरादून। आरटीआई एक्टिविस्ट एवं वरिष्ठ अधिवक्ता विकेश सिंह नेगी ने देहरादून कचहरी स्थित अपने कक्ष में आयोजित पत्रकार वार्ता में उत्तराखंड पेयजल निगम में वर्षों से चल रही वित्तीय अनियमितताओं का एक बार फिर तथ्यों पर आधारित गंभीर खुलासा किया है। यह पहला अवसर नहीं है जब उन्होंने राज्य व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार पर उंगली उठाई हो। सैन्यधाम प्रकरण, नगर निगम में अनियमितताएँ और चाय बागान की जमीन से जुड़े बड़े घोटालों का खुलासा कर वे पहले ही व्यापक चर्चा में रहे हैं। इस बार उन्होंने जिस घोटाले का उल्लेख किया है, वह केवल आर्थिक कदाचार नहीं, बल्कि संस्थागत भ्रष्टाचार का सबसे खतरनाक रूप है, जो सीधे जनता के अधिकार और करदाताओं के धन से जुड़ा है।
आरटीआई एक्टिविस्ट एवं अधिवक्ता विकेश सिंह नेगी ने कहा कि कंप्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल (सीएजी) की रिपोर्ट के आधार पर उन्हें आरटीआई में यह तथ्य प्राप्त हुए हैं कि वर्ष 2016 से लेकर 2024-25 (मई तक) उत्तराखंड पेयजल निगम में कुल 2660 करोड़ 27 लाख रुपये की गड़बड़ी दर्ज की गई है। उन्होंने बताया कि रिपोर्ट में यह स्पष्ट दर्शाया गया है कि कई वर्षों में विभाग ने नियमानुसार आडिट तक नहीं करवाया, जिससे यह संदेह और गहरा हो जाता है कि आडिट न करवाना भी भ्रष्टाचार को छिपाने की एक संगठित रणनीति थी। उन्होंने कहा कि यह गंभीर वित्तीय अपराध है क्योंकि सार्वजनिक धन का उपयोग बिना परीक्षण, सत्यापन और वैधानिक समीक्षा के किया गया।
आरटीआई एक्टिविस्ट एवं अधिवक्ता विकेश सिंह नेगी ने यह भी कहा कि वर्ष 2017-18 और 2018-19 में पेयजल निगम का कोई आडिट नहीं किया गया, जो कि निगम अधिनियम, वित्तीय नियमों और शासनादेशों का सीधा उल्लंघन है। इसके बावजूद न तो विभाग ने स्पष्टीकरण दिया, न ही शासन ने कोई जवाबदेही तय की। 2016-17 में 92.41 करोड़, 2019-20 में 656.05 करोड़, 2020-21 में 829.90 करोड़, 2021-22 में 43.48 करोड़, 2022-23 में 96.99 करोड़, 2023-24 में 803 करोड़, तथा 2024-25 में मई तक 38.41 करोड़ की अनियमितताएँ दर्ज हुईं। उन्होंने कहा कि इसमें सबसे दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह है कि कोरोना काल में, जब राज्य पर स्वास्थ्य और जन-कल्याण संबंधी संकट था, तब भी पेयजल निगम ने 829.90 करोड़ रुपये का गोलमाल कर दिया। यह न केवल वित्तीय अपराध है, बल्कि मानवीय संवेदनहीनता का सबसे बड़ा उदाहरण भी है।
आरटीआई एक्टिविस्ट एवं अधिवक्ता विकेश सिंह नेगी ने आरोप लगाया कि ठेकेदारों ने जीएसटी तक का भुगतान नहीं किया, जबकि यह भुगतान केंद्रीय कानून के तहत अनिवार्य है। इसके बावजूद विभाग ने न तो कोई नोटिस जारी किया और न ही कोई दंडात्मक कार्रवाई की। कई मामलों में ठेकेदारों को बिना कार्य पूर्ण किए ही और बिना बैंक गारंटी लिए अग्रिम भुगतान कर दिया गया, जो वित्तीय नियमों के मूल सिद्धांतों का घोर उल्लंघन है। यह दर्शाता है कि विभागीय अधिकारियों और ठेकेदारों के बीच गहरी मिलीभगत थी, जो इस पूरे वित्तीय अनियमितता तंत्र को संचालित करती रही। उन्होंने यह भी बताया कि निर्माण कार्यों में रॉयल्टी तक नहीं ली गई, जो कि शासनादेशों के तहत अनिवार्य है। इसके अलावा कई निर्माणों की गुणवत्ता इतनी निम्न स्तरीय पाई गई कि वह सीधे-सीधे भ्रष्टाचार की ओर संकेत करती है। नेगी ने कहा कि यह पूरा मामला केवल ‘‘अनियमितता’ नहीं बल्कि ‘‘साजिश के तहत किया गया संगठित आर्थिक अपराध’ है, जो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं के अंतर्गत गंभीर दंडनीय अपराध बनता है।
पत्रकार वार्ता के दौरान आरटीआई एक्टिविस्ट एवं अधिवक्ता विकेश सिंह नेगी ने इस बात पर भी गहरी चिंता जताई कि इतनी बड़ी गड़बड़ी में शामिल सीएजी रिपोर्ट को अब तक विधानसभा में प्रस्तुत तक नहीं किया गया, जो कि लोकतांत्रिक परंपराओं और संवैधानिक दायित्वों का सीधा उल्लंघन है। विधानसभा में रिपोर्ट न रखने का अर्थ है कि इस रिपोर्ट को दबाने का प्रयास किया गया। उन्होंने कहा कि जब तक रिपोर्ट पर चर्चा नहीं होगी, तब तक दोषियों पर कोई कार्रवाई संभव नहीं है और यही कारण है कि इस पूरे घोटाले को जानबूझकर पर्दे के पीछे रखा गया। अधिवक्ता नेगी ने इस पूरे मामले की शिकायत मुख्यमंत्री को भेज दी है तथा दोषी अधिकारियों और ठेकेदारों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की मांग की है। उनका कहना है कि जब अनियमितताओं का कुल आंकड़ा 2660 करोड़ से अधिक हो, तब इसकी जांच किसी औपचारिक विभागीय जांच से संभव नहीं है। इसलिए उन्होंने इस मामले की जांच उच्चस्तरीय समिति, एसआईटी, विजिलेंस या सीबीआई जैसी स्वतंत्र एजेंसी से कराने की मांग की है, ताकि राजनीतिक या प्रशासनिक प्रभाव से परे रहकर सच्चाई सामने आ सके। अंत में आरटीआई एक्टिविस्ट एवं अधिवक्ता विकेश सिंह नेगी ने कहा कि यह मामला केवल वित्तीय भ्रष्टाचार का नहीं, बल्कि राज्य की प्रशासनिक आत्मा पर चोट का है। जनता के कर के पैसे को जिस तरह वर्षों तक लूटा गया, वह लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था पर सबसे बड़ा प्रश्नचिह्न है। उन्होंने कहा कि यदि सरकार सचमुच पारदर्शिता और शुचिता के प्रति प्रतिबद्ध है, तो इस प्रकरण में तत्काल और कठोर कार्रवाई सुनिश्चित की जानी चाहिए।

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