वर्ष 2005 में बना सूचना का अधिकार कानून आम आदमी के लिये एक ऐसा यंत्र है जिसका इस्तेमाल कर किसी भी सरकारी विभाग से आसानी से जानकारी ली जा सकती है और लगभग 13 वर्षों में जब से यह कानून लागू हुआ है, इस अधिकार के इस्तेमाल से कई घोटालों का पर्दाफाश भी हुआ है। लेकिन लोगों को यही नहीं पता है कि इसे वे कितनी आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं।
किसी भी सरकारी विभाग, जैसे नगर निगम, तहसील, शिक्षा विभाग, यहां तक की मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक से भी जानकारी ली जा सकती है। इसके लिये आपको सिर्फ एक पत्र लिखना होता है जो कि आप सम्बन्धित विभाग के ‘‘लोक सूचना अधिकारी’’ को भेज सकते हैं और उसमें लिख सकते हैं कि आप सूचना के अधिकार के तहत जानकारी चाहते हैं। उसके बाद आप जितनी भी सूचनायें या जानकारियां चाहते हैं, उन्हें स्पष्ट शब्दों में लिख दें। जानकारी लेने के लिये पत्र के साथ 10 रूपये का शुल्क देना जरूरी है जो कि आप अलग-अलग तरह से दे सकते हैं, जैसे कि पोस्ट आफिस से जारी 10 रूपये का पोस्टल आर्डर।
हर लोक सूचना अधिकारी को पत्र मिलने के 30 दिन के अन्दर जानकारी आप तक पहुंचाना होता है। अगर आपको गलत जानकारी मिली है या मिली ही नहीं है, तो 30 दिन के बाद आप उसी विभाग में ‘‘प्रथम विभागीय अपीलीय अधिकारी’’ के नाम पत्र भेजकर अपील कर सकते हैं, जिसके बाद आपको सही जानकारी उपलब्ध कराई जायेगी। फिर भी अगर न मिले, तो दूसरी अपील के लिये हर राज्य में राज्य सूचना आयोग व दिल्ली में केन्द्रीय सूचना आयोग बनाये गये हैं जहां पर द्वितीय अपील भी दाखिल की जा सकती है।
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