उत्तराखण्ड राजनीतिक

उत्‍तराखंड बजट: 12.38 फीसद बजट में कैसे पूरी हों जन अपेक्षाएं

देहरादून। लोकसभा चुनाव के मुहाने पर बजट भले ही नई उम्मीदें जगाए, लेकिन खराब माली हालत सरकार की मुश्किलें बढ़ा रही है। त्रिवेंद्र सरकार लगातार तीसरी दफा भी कुल बजट की तुलना में निर्माण कार्यो के लिए बजट का आकार नहीं बढ़ा सकी है। इन कार्यो के लिए कुल बजट 48663.90 करोड़ में 6025.33 करोड़ यानी महज 12.38 फीसद बजट रखा जा सका है। नतीजतन केंद्रपोषित योजनाओं के रूप में डबल इंजन के बूते ही जनता की उम्मीदें पूरी की जाएंगी। शहरों से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक बुनियादी सुविधाओं के ढांचे को खड़ा करने, युवाओं को रोजगार मुहैया कराने से लेकर आजीविका योजनाओं के जरिये रिवर्स पलायन की सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाएं केंद्रपोषित योजनाओं, बाह्य सहायतित योजनाओं के रूप में 8500 करोड़ से ज्यादा की मदद से ही पूरी हो सकेंगी।

राज्य सरकार की बड़ी योजनाओं के लुभावने वायदे और विकास की प्रचंड जन अपेक्षाओं को साधने के लिए लिए कागजों पर की गई मशक्कत को जमीन पर उतारने में डबल इंजन से ही ज्यादा उम्मीदें हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबका साथ, सबका विकास के संकल्प पर राज्य सरकार का भरोसा बेसबब नहीं है। प्रधानमंत्री आवास योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, राष्ट्रीय उद्यान मिशन से लेकर बाढ़ सुरक्षा से लेकर पेयजल और सिंचाई के लिए केंद्र पर निर्भरता ज्यादा हो गई है।

वजह राज्य सरकार के कुल बजट का बड़ा हिस्सा सिर्फ वेतन-भत्तों, मानदेय, पेंशन आदि पर खर्च हो रहा है। यह बजट खर्च का 40 फीसद से ज्यादा है। इसमें राज्य के ऊपर कर्ज और ब्याज की अदायगी और अन्य बढ़ते खर्चो को शामिल किया जाए तो निर्माण कार्यो के लिए 13 फीसद बजट भी शेष नहीं बच रहा है। 85 फीसद से ज्यादा बजट अन्य मदों में ही खर्च हो रहा है।

बीते वर्ष की तुलना में महंगाई भत्ते में 37.34 फीसद, यात्रा भत्ते पर 35 फीसद, कार्यालय खर्च पर 38 फीसद तो मोटर वाहनों के अनुरक्षण और पेट्रोल आदि की खरीद में करीब 110 फीसद वृद्धि हुई है। राज्य सरकार के सामने फिजूलखर्ची को रोकने की चुनौती भी है। इसका नतीजा निर्माण कार्यो के लिए कम धनराशि के रूप में सामने है। वर्ष 2017-18 में 13.23 फीसद से घटकर वर्ष 2018-19 में वृहत और लघु निर्माण कार्यो के लिए धन मात्र 12.73 फीसद रह गया था।

वर्ष 2019-20 में यह महज 12.38 फीसद रह गई है। आमदनी कम और बढ़ते खर्च की वजह से शहरों और गांवों की दशा में सुधार का रास्ता आसान नहीं है। औद्योगिक क्षेत्र के साथ ही खेती, सहकारिता, पर्यटन व सेवा के क्षेत्र में बड़ी संख्या में रोजगार की उम्मीदें जगाई गई हैं, लेकिन इसके लिए बजट की उपलब्धता के लिए सरकार को मशक्कत करनी पड़ेगी। राजकोषीय घाटा 6798 करोड़ भले ही राजकोषीय उत्तरदायित्व व बजट प्रबंधन अधिनियम के अंतर्गत है, लेकिन इस राशि को इस दायरे में ही समेटे रखने में सरकार को खासी बाजीगरी का सहारा लेना पड़ा है।

Related posts

मुर्गी-अंडे बेच खाने वाले पशु चिकित्सक पर मंत्री रेखा मेहरबान

Anup Dhoundiyal

चुनाव से बाहर हो चुकी कांग्रेस छटपटा रहीः  कौशिक

Anup Dhoundiyal

समाज के लिए ही जियूँगीः सोनिया आनन्द

Anup Dhoundiyal

Leave a Comment