देहरादून। परमात्मा के दर्शन सत्गुरु के ब्रहम् ज्ञान से ही सम्भव है। जिस प्रकार कबीर दास जी ने कहा कि- गुरु गोविन्द दोउ खड़े, काके लागो पांई, बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताया। गुरु ही इस ब्रह्म का साकार स्वरूप है। जिसने कि इस निरंकार पारब्रहम की जानकारी अपने ज्ञान द्वारा संतों को दी। इस आशय के विचार संत निरंकारी भवन, हरिद्वार बाईपास रोड के तत्वाधान में रविवार को आयोजित सत्संग कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए ऋषिकेश से पधारे ज्ञान प्रचारक महादेव कुड़ियाल ने व्यक्त किये।
उन्होंने कहा कि सद्गुरू के बिना ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति सम्भव नहीं है। सद्गुरू के बिना मानव अपने इस अमूल्य जीवन की पहचान नहीं कर सकता। सन्त-महापुरूष युगों-युगों से इंसान को एक ही आवाज दे रहे है कि परमात्मा एक है, उसे हम अलग-अलग नामों से पुकारते है, वह एक ही है। सद्गुरू हमें इसी एक निराकार की अनुभूति कराकर एक ईश्वर से जोड़ते है और जीवन को बंधनों से मुक्त करते है। सद्गुरू हमें ज्ञान के साथ बोलचाल और व्यवहार में प्रेम, नम्रता तथा मिलवर्तन सिखाता है। उन्होंने सत्गुरू माता सुदीक्षा सविन्दर हरदेव के पावन सन्देश को देते हुए आगे कहा कि ब्रह्मज्ञान बोलने या सुनाने की वस्तु नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की कला है। ब्रह्मज्ञान को मन में धारण करके ही हम इस जीवन यात्रा को सुख के साथ तय कर सकते है। आदिकाल से ही सन्त महापुरूष हमें इसी ज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रेरित कर रहे है। ब्रह्मज्ञान से ही प्रेम, नम्रता और सहनशीलता के भाव प्राप्त होते है। जिस मनुष्य ने इन भावों को अपने मन में धारण किया, वही इस निराकार पारब्रह्म को पा लेता है। इस सत्संग कार्यक्रम में अनेकों सन्तों ने गीतों एवं विचार के माध्यम से भावनाओं को व्यक्त किया। मंच संचालन नरेश विरमानी ने किया।