उत्तराखण्ड

सरकारी अस्पताल हो या फिर प्राइवेट सभी जगह ओपीडी व आइपीडी में मरीजों की भीड़

डेंगू के बढ़ते प्रकोप के कारण अस्पतालों पर भी मरीजों का बोझ बढ़ता जा रहा है। रही-सही कसर वायरल व अन्य मौसमी बीमारियों ने पूरी कर दी है। सरकारी अस्पताल हो या फिर प्राइवेट अस्पताल सभी जगह ओपीडी व आइपीडी में मरीजों की भीड़ लगी हुई है। स्थिति ये कि डेंगू भर्ती करने के लिए जो अलग आइसोलेशन वार्ड बनाए गए हैं वहां भी बेड उपलब्ध नहीं हैं। अब तो बरामदे में स्ट्रेचर लगाकर मरीजों का उपचार किया जा रहा है।

मरीजों को सबसे बड़ी परेशानी का सामना उस वक्त करना पड़ रहा है, जबकि उन्हें बेड उपलब्ध नहीं होने पर एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल के लिए रेफर किया रहा है। दून अस्पताल, कोरोनेशन व गांधी शताब्दी अस्पताल में अक्सर इस तरह की समस्या मरीजों के सामने आ रही है। स्थिति ये कि एक बेड पर दो-दो मरीज भर्ती करने पड़ रहे हैं।

बरामदे में स्ट्रेचर पर इलाज 

प्रदेश के प्रमुख सरकारी अस्पतालों में शुमार दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय पर मरीजों का सबसे ज्यादा बोझ है। डेंगू के ही यहां पर अब तक 700 से अधिक मरीजों को उपचार दिया जा चुका हैं, वहीं 60 मरीज अभी भी भर्ती है। उस पर वायरल आदि के मरीज भी भारी संख्या में अस्पताल पहुंच रहे हैं। जिस पर अस्पताल प्रशासन जैसे-तैसे बरामदे में स्ट्रेचर लगाकर मरीजों का इलाज करा रहा है।

स्थिति यह आ गई है कि कई मरीजों को प्राथमिक उपचार के बाद वापस भेजना पड़ रहा है। मरीज को भर्ती करने में आ रही दिक्कत के कारण इमरजेंसी के स्टाफ से अक्सर तीमारदारों की नोकझोंक हो रही है। कई जनप्रतिनिधि तक अधिकारियों को फोन घनघना रहे हैं। पर अब सिफारिश पर भी बेड मिलना मुश्किल हो रहा है।

गांधी व कोरोनेशन अस्पताल में भी स्थिति विकराल

कोरोनेशन व गांधी नेत्र चिकित्सालय में भी कमोबेश यही स्थिति है। हालत ये है कि अस्पताल में हर दूसरा शख्स बुखार से पीड़ित पहुंच रहा है। इन्हें न केवल डॉक्टरी परामर्श बल्कि जांच के लिए भी भारी दिक्कत उठानी पड़ रही है। यही नहीं मरीजों को बेड तक मयस्सर नहीं हैं।

गांधी नेत्र चिकित्सालय में डेंगू के मरीजों के लिए 24 बेड का आइसोलेशन वार्ड बनाया गया है। जबकि इमरजेंसी में पांच बेड हैं। पर ये इंतजाम भी नाकाफी साबित हो रहे हैं। आलम ये कि न केवल इमरजेंसी बल्कि डेंगू वार्ड में भी एक बेड पर दो-दो मरीज लिटाए जा रहे हैं। कोरोनेशन अस्पताल में डेंगू के लिए मात्र चार बेड हैं। सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां मरीज को भर्ती होने में कितनी दिक्कत होती होगी।

प्रेमनगर-रायपुर अस्पताल पर बढ़ा बोझ 

डेंगू व वायरल के कारण इस वक्त रायपुर व प्रेमनगर अस्पताल पर भी दबाव बढ़ गया है। जिसका अंदाजा यहां की ओपीडी को देखकर ही लगाया जा सकता है। इन अस्पतालों में औसतन 200-250 मरीज हर रोज पहुंचते हैं। जबकि अब यह संख्या 400-500 तक पहुंच गई है। प्रेमनगर में कहने के लिए छह बेड का आइसोलेशन वार्ड बनाया गया है, पर फिलहाल यहां 12 मरीज भर्ती हैं। रायपुर अस्पताल में डेंगू के तीन बेड हैं, पर यह इंतजाम नाकाफी साबित हो रहे हैं।

बेड बढ़ाने की गुंजाइश नहीं 

दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. केके टम्टा के मुताबिक, वर्तमान स्थिति में हम बरामदे तक में मरीजों का उपचार कर रहे हैं। बेड बढ़ाने की गुंजाइश अब नहीं है। हाल में स्टाफ को 12 घंटे तक भी ड्यूटी करनी पड़ रही है। स्वास्थ्य महानिदेशालय से 15 स्टाफ नर्स व दो लैब टेक्नीशियन की मांग की है।

मरीजों का अत्यधिक दबाव 

गांधी और कोरोनेशन अस्पताल के सीएमएस डॉ. बीसी रमोला के अनुसार,गांधी व कोरोनेशन अस्पताल में डेंगू व इमरजेंसी के मिलाकर कुल 29 बेड हैं। यह बात सही है कि इस वक्त मरीजों का अत्यधिक दबाव है। पर डॉक्टर व कर्मचारी पूरी तत्परता के साथ अपना काम कर रहे हैं। भीड़ ज्यादा होने के कारण मरीजों को दिक्कत जरूर होती है।

डेंगू पर अब आंकड़ों की बाजीगरी में जुटे अफसर

डेंगू को लेकर प्रदेशभर में हाहाकार मचा हुआ है। हर दिन इस बीमारी के दर्जनों नए मामले सामने आ रहे हैं और आठ लोगों को अपनी जान तक गंवानी पड़ी है। सरकारी से लेकर निजी अस्पतालों तक में मरीजों की भारी भीड़ दिख रही है। पर स्वास्थ्य विभाग के अफसर आंकड़ों की बाजीगरी में जुटे हैं। यह साबित करने पर तुले हैं कि स्थिति इतनी भयावह नहीं है जितनी दिखाई जा रही है।

डेंगू को लेकर विपक्षी दल लगातार सरकार को घेरने में लगे हैं। उनका कहना है कि डेंगू पीडि़तों की संख्या सरकारी आंकड़ों से कई ज्यादा है। बल्कि मौत का असल आंकड़ा भी सरकार छिपा रही है। स्वास्थ्य विभाग के एक कारनामे ने अब इन आरोपों की पुष्टि कर दी है।

हुआ यूं कि मुख्यमंत्री की घुड़की के बाद स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारी दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय में प्रेस वार्ता के लिए पहुंचे थे। मकसद ये दिखाना था कि सब ठीक चल रहा है। पर हुआ उल्टा। इस प्रेस वार्ता में डेंगू मरीजों की संख्या को लेकर एक नया खुलासा हो गया। महकमा देहरादून में अब तक मरीजों की संख्या 862 बता रहा था। जबकि विभाग के कुछ अफसरों ने इस दावे की कलई खोल दी।

उन्होंने स्पष्ट किया कि यह केवल दून अस्पताल में हुई जांचों का आंकड़ा है। इसमें कोरोनेशन एवं गांधी शताब्दी के मरीजों का आंकड़ा शामिल ही नहीं है। जबकि वहां पिछले एक पखवाड़े से एलाइजा जांच की जा रही है। इस विषय में जब मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. एसके गुप्ता से पूछा गया तो उन्होंने स्वीकार किया कि विभाग की ओर से अभी केवल दून अस्पताल का आंकड़ा दिया जाता रहा।

कहने लगे कि कोरोनेशन व गांधी नेत्र चिकित्सालय का आंकड़ा जुटाकर बताया जाएगा। वहीं, जब कोरोनेशन एवं गांधी अस्पतालों के सीएमएस डॉ. बीसी रमोला से आंकड़ा मांगा गया तो उन्होंने बताया कि गांधी में 368 और कोरोनेशन में कुल 372 मरीज डेंगू पॉजीटिव पाए गए। ये अलग बात है कि आंकड़ा सार्वजनिक करने के कुछ देर बाद ही उन्होंने ऐसी कोई भी जानकारी होने से इन्कार कर दिया।

बहरहाल, अफसरों के मुंह से निकली इस सच्चाई ने एक बात से पर्दा उठा दिया कि जिले में अब बताए जा रहे मरीजों की संख्या असल में दोगुनी है। दून, कोरोनेशन और गांधी नेत्र चिकित्सालय का संयुक्त आंकड़ा जोड़ा जाए तो कुल मरीजों की संख्या 1602 हो गई है। उस पर अभी कई छोटे नर्सिंग होम व अस्पताल अपने यहां भर्ती मरीज की जानकारी स्वास्थ्य विभाग को दे ही नहीं रहे हैं। ऐसे में जिस स्थिति को स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी सामान्य बता रहे हैं वह वास्तव में काफी भयावह है।

तीन सालों में सर्वाधिक मरीज

डेंगू की भयावहता का अंदाजा इससे भी लग जाता है कि तीन अस्पतालों में आए डेंगू पॉजीटिव केस ने 2016 का भी रिकॉर्ड तोड़ दिया है। वर्ष 2016 में जहां 1434, 2017 में 366 और 2018 में 314 मरीज पॉजीटिव आए थे।

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