देहरादून, UK Review। उत्तराखंड स्थापना दिवस समारोह को समाप्त हुए दो सप्ताह गुजर गए हैं. महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव हुए भी अरसा गुजर गया। मगर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की कुर्सी खिसकने के बजाय और मजबूत होती नजर आ रही है। जबकि त्रिवेंद्र सिंह रावत के विरोधी खेमे की ओर से लगातार सोशल मीडिया के जरिये ये आशंका फैलाई गई थी कि पार्टी आलाकमान उनके कामकाज से खुश नहीं है और महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव के बाद राज्य में कभी भी सत्ता परिवर्तन हो सकता है। यानी भाजपा पूर्व की तरह ही आधे कार्यकाल में ही नेतृत्व परिवर्तन करने का मन बना चुकी है। हालांकि बेबुनियाद हवाई किलों की मुनादियों से बेपरवाह त्रिवेंद्र सिंह रावत ने स्थापना दिवस कार्यक्रमों को नया रंग दिया। उन्होंने इसे देहरादून तक सीमित न कर राज्यभर में आयोजित करने का फैसला लिया और एक हफ्ते लगातार चले कार्यक्रमों और उनमें अपनी लंबे समय तक मौजूदगी से विरोध की हवा को भी अपने पक्ष में भुना लिया।
राज्य स्थापना दिवस कार्यक्रमों की शुरुआत अगर टिहरी में हुए बहुचर्चित रैबार कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत के आने से हुई तो सैनिक सम्मेलन में पूर्व विदेशमंत्री जनरल (रिटा.) वीके सिंह पहुंचे। अल्मोड़ा में केंद्रीय खेल मंत्री किरण रिजीजू ने शिरकत की तो मसूरी फिल्म कान्क्लेव में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी शामिल हुईं। राज्य स्थापना दिवस पर देहरादून में हुए भारत-भारती उत्सव में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का पहुंचना सीएम विरोधियों के लिए बड़ा संकेत था। सरकार की ओर से इस बार ज्यादा जोर इन कार्यक्रमों की भव्यता पर दिया गया। शायद इसीलिए कार्यक्रमों के आयोजन की जिम्मेदारी अलग-अलग कंपनियों और मीडिया समूहों को दी गई।
कार्यक्रमों की भव्यता का अंदाजा टिहरी झील के किनारे हुए रैबार कार्यक्रम से लग गया था। देहरादून से दूर टिहरी में इतने दिग्गजों के साथ कार्यक्रम करने के लिए जमकर पैसा बहाया गया। फुसफुसाहट तो इस बात की भी है कि इस कार्यक्रम का आयोजन करने वाली कंपनी ने मेहमानों को लाने के लिए ऋषिकेश में हेलीकॉप्टर और दिल्ली में चार्टर्ड फ्लाइट तक बुक की थी। मेहमानों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए लिए दिल्ली और देहरादून से बड़े पैमाने पर टैक्सियों की मूवमेंट की गई। हर मेहमान के लिए एक वॉलंटियर लगाया गया, जिसने मेहमान का टिहरी पहुंचना सुनिश्चित किया। मेहमानों को उनकी अहमियत महसूस कराने के लिए हरिद्वार से टिहरी तक सड़कों को होर्डिंगों से पाट दिया गया। कानाफूसी हो रही है कि सबसे ज्यादा पैसा मेहमानों के आनेजाने, होर्डिंगों, भव्य पंडाल और सोशल मीडिया प्रचार पर खर्च किया गया। पहले ही कार्यक्रम की भव्यता से सीएम त्रिवेंद्र के विरोधियों को आभास होने लगा था कि ये आयोजन उन्हें सियासी मजबूती देने जा रहे हैं। ऐसी खबरें हैं कि कुछ मायूस नेताओं ने तो खुद मुख्यमंत्री से शिकायत की कि उन्हें इन कार्यक्रमों में नहीं बुलाया गया। वह उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। हालांकि सीएम ने उन्हें यह समझाने में कामयाब रहे कि जिस जगह आयोजन किया गया, वहां के जनप्रतिनिधियों को पूरी तव्वजो दी गई।
उत्तराखंड के लिए यह पहला संयोग था कि स्थापना दिवस कार्यक्रम में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत, सैन्य सचिव ले. जनरल अनिल भट्ट, एयर मार्शल एमएस बुटोला, ले. जनरल जेएस नेगी, रॉ और एनटीआरओ के पूर्व प्रमुख आलोक जोशी, कोस्टगार्ड के पूर्व प्रमुख राजेंद्र सिंह, एचएएल के एचआर डायरेक्टर वीएम चमोला, एफटीआईआई के डायरेक्टर भूपेंद्र कैंथोला, आईसीएआर के पशु वैज्ञानिक डा. मनमोहन सिंह चैहान जैसे दिग्गजों की मौजूदगी थी। इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को भी आना था लेकिन परिवार में हुई दुर्घटना के चलते वह नहीं आए। टिहरी में हुआ कार्यक्रम कई मायनों में खास था, पहली बार टिहरी में एक साथ इतने बड़े पैमाने पर वीआईपी की मूवमेंट हुई। तमाम व्यस्तताओं के बावजूद सभी ने राज्य सरकार के न्योते का सम्मान किया। सभी मेहमानों की मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ मंच पर दिखी बांडिंग इस बात की तस्दीक थी कि वे राज्य सरकार द्वारा उन्हें राज्य की विकास यात्रा का सहभागी बनाए जाने पर सम्मानित महसूस कर रहे थे। रैबार से आई तस्वीरों ने निश्चित तौर पर विरोधियों को निराश किया। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का टिहरी को चार घंटे से ज्यादा का समय देना एक बड़ा सियासी संदेश था। वह न सिर्फ कार्यक्रम के पहले सत्र में मौजूद रहे बल्कि इसके बाद टिहरी झील के किनारे मुख्ममंत्री त्रिवेंद्र सिंह के साथ लंच किया और इसके बाद झील में दोनों सीएम ने वोटिंग का आनंद लिया। यह एक ऐसा लम्हा था जिसकी गूंज न सिर्फ उत्तराखंड बल्कि उत्तर प्रदेश की मीडिया में भी सुनाई दी। सीएम योगी आदित्यनाथ का यह कहना कि रैबार के वजह से उन्हें 1986 के बाद दोबारा टिहरी आने का अवसर मिला, अपने आप में इस कार्यक्रम के महत्व को दर्शाता है। इन आयोजनों से त्रिवेंद्र सिंह रावत को लेकर यह धारणा फिर मजबूत हुई है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और संघ परिवार की निर्विवाद पसंद हैं। उत्तराखंड में भी इन आयोजनों से साफ संदेश गया है कि त्रिवेन्द्र के विकल्प की बात करना जल्दबाजी है। वह राज्य में तीन साल का कार्यकाल पूरा करने जा रहे हैं और अब उनके सामने सबसे बड़ी जिम्मेदारी हरिद्वार में होने वाले कुंभ मेले की है। इस बार उनकी तुलना प्रयागराज में हुए कुंभ मेले की भव्यता से होगी। यह उनके प्रशासनिक कौशल की कसौटी होगी। हालांकि उत्तराखंड के स्थापना दिवस पर हुए आयोजनों की भव्यता से सियासी मजबूती के साथ-साथ उन्होंने कुंभ की तैयारियों का ट्रेलर भी दिखा दिया है।