उत्तराखंड के वरिष्ठ समाजसेवी एवं राजनैतिक विश्लेषक डा. महेन्द्र राणा का कहना है कि केंद्र सरकार का नये कृषि बिल भारतीय किसानों की रीढ़ कृषि मंडियों को धीरे धीरे तबाह कर देगा। उन्होंने केंद्र सरकार से प्रश्न करते हुए पूछा कि इस कारपोरेट समर्थक बिल लाने के बजाय अगर वर्तमान मंडी समितियों में ही किसानों के पैसे के सही समय पर भुगतान की व्यवस्था में सुधार लाने का कानून लाया जाता तो क्या बुरा था ।
सरकारी मंडियों में फसल की एक न्यूनतम कीमत मिलने का प्रावधान था , लेकिन मंडी के बाहर वो न्यूनतम कीमत मिलेगी या नहीं, इसे लेकर कोई नियम इस बिल में नहीं है । ऐसे में हो सकता है कि किसी फसल का उत्पादन ज्यादा होने पर व्यापारी किसानों को मजबूर करें कि वो अपनी फसल कम कीमत पर बेचें तब इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा ।
किसानों की एक चिंता ये भी है कि एपीएमसी मंडी में जो आढ़तिये अभी उनसे फसल खरीदते हैं, उन्हें मंडी में व्यापार करने के लिए लाइसेंस लेना होता है ,एपीएमसी एक्ट के तहत वेरिफिकेशन के बाद ही उन्हें लाइसेंस मिलता था , ऐसे में किसान इस बात को लेकर आश्वस्त रहते हैं कि वो धोखाधड़ी नहीं करेंगे ।नए बिल में लिखा है कि कोई भी व्यापारी जिसके पास पैन कार्ड हो, वो किसान से फसल ले सकता है ।
सरकार स्टॉक करने की छूट दे रही है ,लेकिन ज्यादातर किसानों के पास भंडारण की व्यवस्था नहीं है ,सब्जी किसानों के पास सब्जियों के भंडारण के लिए कोल्ड स्टोरेज नहीं है ,ऐसे में उन्हें उत्पादन के बाद अपनी फसलें औने-पौने दाम पर व्यापारियों को बेचनी होंगी।प्राइवेट कंपनियों के पास ज्यादा क्षमता और संसाधन होते हैं तो वे इनका स्टॉक करके करके अपने हिसाब से मार्केट को चलाएंगे, ऐसे में फसल की कीमत तय करने में किसानों की भूमिका नहीं के बराबर रह जाएगी और कमान बड़े व्यापारी और कंपनियों यानी प्राइवेट प्लेयर्स के हाथ में आ जाएगी ।
इस नए बिल के अनुसार मंडी के बाहर बेचने खरीदने पर मंडी शुल्क नही लगेगा ,जिससे कोई भी व्यापारी शुल्क देकर मंडी से खरीदेगा ही क्यों ,और जब मंडी में खरीददार ही नहीं होंगे तो मंडियों का अस्तित्व धीरे धीरे अपने आप समाप्त हो जाएगा और गरीब भारतीय किसान बड़े बड़े कॉर्पोरेट व्यापारियों के जाल में फसने को मजबूर हो जाएगा।
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