इन दिनों कोटद्वार में खनन सुर्खियों में है। पिछले दिनांे नदी में एक युवक की मौत के बाद तो कोटद्वार के खनन पर चैातरफा सवालों की बरसात हो रही हैै। ऐसा होना स्वाभाविक ही है। बरसात में पूरे प्रदेश में खनन पर रोक लेकिन कोटद्वार में खनन की
अनुमति। ऐसे में सवालों की बरसात तो होगी ही।प्रदेश के पर्यावरण मंत्री डा हरक सिंह रावत की विधानसभा कोटद्वार में खनन पर सवाल उठ रहे हैं। सवाल यह है कि बरसात शुरू होेेते ही पूरे प्रदेश में खनन पर रोक लगा दी गयी है तो कोटद्वार पर मेहरबानी क्यों। सवाल पर्यावरण मंत्री डा हरक सिंह रावत से किया जाना भी लाजिमी ही है। दरअसल, प्रदेश के पर्यायवरण मंत्री डा हरक सिंह रावत की विधानसभा कोटद्वार में रिवर ट्रेनिंग के नाम पर सुखरो नदी में खनन की अनुमति दी गयी है। नतीजन, जुलाई माह में भी नदी पर जेसीबी व भारी मशीनों से खनन का खेल चल रहा है। बरसात में हो रहा यह खनन खतरे न्यौता दे रहा है। इसके अलावा बरसात में नदी की प्राकृतिक प्रकृति व जलीय जीवों के लिये भी खतरा है। आखिर कोटद्वार में ये मेहरबानी क्यों है। मई अंतिम सप्ताह और जून पहले सप्ताह में कोटद्वार में सुखरौ नदी, ग्वालगढ एवं सिगड्डी स्रोत में खनन के पट्टों का आवंटन किया गया। इनमंे जून माह के खनन कार्य होने के बाद सरकार की नीति के तहत एक जुलाई से खनन बंद किया गया। इसके बाद खनन पट्टाधारकों की मांग पर और समय दिये जाने की मांग की गयी। वजह, खनन कार्य पूरा नहीं होना बताया गया। चेनेलाइजेशन के नाम पर खनन का खेल चल रहा है। यह खनन का खेल जान का दुश्मन बन रहा है। प्रदेश के पूर्व स्वास्थ्य सीधे प्रदेश सरकार पर सवाल उठाते हैं। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड की खनन नीति उत्तराखंड को बर्बाद करने को बनायी गयी है। नदियों को पंद्रह फीट तक खोद दिया गया है। खनन के खेल में अपने चेहतों को सीधा लाभ पहुंचाने का खेल चल रहा है।