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सधे कदम, बुलंद हौसलो से लिखी सफलता की कहानी

बढ़ कर अकेला तू पहल कर, देख कर तुझको काफिला खुद बन जाएगा

हौसले बुलंद कर रास्तों पर चल दे, तुझे तेरा मुक़ाम मिल जाएगा
देहरादून। उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की जीवनी हर उस व्यक्ति के लिए प्ररेणास्रोत है जो यह सोचता है कि अभावों में जीवन यापन करने वाला व्यक्ति सफलता की ईबारत नहीं लिख सकता है। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जीवन की ही तरह उत्तराखंड के युवा मुख्यमंत्री धामी का जीवन भी संघर्षों भरा रहा है। मुख्यमंत्री धामी ने अभावों में जीवन यापन करने के बावजूद मुश्किलों को कभी भी खुद पर हावी नहीं होने दिया। मन में विश्वास और मंजिल की तरफ सधे कदमों से चलते रहे।इन दिनों सोशल मीडिया पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वे एक निजी चौनल पर साक्षात्कार के दौरान अपने जीवन के संघर्ष के दिनों को याद कर रहे हैं।साधारण स्कूल में अध्ययन करने के बाद भी उन्होंने अपनी मेहनत और लगन के बल पर मैनेजमेंट और लॉ की डिग्री हासिल की और आज वे मुख्यमंत्री के पद को सुशोभित कर रहे हैं।जब उनसे पूछा गया कि जहां कई नेताओं के बच्चे विदेशों में पढ़ते हैं, वहीं उनके बच्चे आज भी गांव में अध्ययन कर रहे हैं। क्या वे नहीं चाहते कि उनके बच्चे शहरों के बड़े स्कूलों में पढ़ें। इस सवाल के जवाब में सीएम धामी कहते हैं कि वे अपने बच्चों को सदैव जमीन से जुड़े रहने की सीख देते हैं। वे कहते हैं कि यह आवश्यक नहीं है कि जो व्यक्ति गांव में रहते हैं, वे उन्नति के सोपानों को नहीं छू सकते हैं। आज जितने भी सफल लोग हैं, वे कहीं न कहीं ग्रामीण पृष्ठभूमि से ही जुड़े हैं और संघर्षपूर्ण जीवन जीकर आज देश-दुनिया में नाम कमा रहे हैं। उन्होंने साधारण से लेकर असाधारण तक की यात्रा की है और जमीन से आसमान को छूने का कार्य किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है, जिन्होंने अपना जीवन गरीबी में बिताया और आज वे देश के उच्च पद पर हैं।मुख्यमंत्री धामी बताते हैं कि उनके पिता जब सेना में पदस्थ थे तो वे गांव में रहते थे। पिथौरागढ़ के सीमांत क्षेत्र में उनका जन्म हुआ। उस समय पहाड़ी क्षेत्रों में हालात इतने खराब थे कि उन्हें सरकारी प्राथमिक स्कूल में पढ़ने के लिए 5-6 किमी पैदल चलकर जाना पड़ता था। आज की तरह तब वहां सड़कें और अन्य सुविधाएं नहीं थीं। स्कूल में लिखने के लिए वे तख्ती यानी स्लेट का इस्तेमाल करते थे, जिसे स्कूल जाने के पूर्व प्रतिदिन तैयार करना होता था। यहां तक कि बैठने के लिए भी उन्हें टाट की बोरी साथ में ले जानी पड़ती थी।जिस व्यक्ति में आगे बढ़ने की ललक होती है, वह कठिन हालातों में भी अपनी राह बना ही लेता है। इस प्रकार की विपरीत परिस्थितियों में जीवन जीने के बाद भी मुख्यमंत्री धामी अपने हौसले के दम पर निरंतर उन्नति कर रहे हैं। उनका जीवन आज की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक है। युवाओं को उनसे सीख लेनी चाहिए कि चाहे जीवन में कितनी भी विपरीत परिस्थितियां हो, उनका हमेशा हिम्मत से सामना करना चाहिए।

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