संवाददाता, सतपुली
चैाबट्याखाल सीट पर घमासान की स्थिति साफ हो चुकी है। यहां सियासी महाभारत सतपाल व केशर के बीच होनी है। भाजपा से सतपाल महाराज व कांग्रेस से केशर सिंह नेगी सियासी मैदान में हैं। इस सीट पर केशर सिंह की राह में खासी चुनौतियां हैं। अंतिम समय पर कांग्रेस से टिकट दावेदारी कर रहे स्थानीय क्षत्रपों को साधना आसान नहीं है। इस सीट पर कांग्रेस का अंदरूनी समीकरण उलझा हुआ है। हालांकि दोनों ही प्रत्याशियों ने जीत की खातिर पूरी ताकत झोंक दी है।चैबट्टाखाल से भले ही 4 स्थानीय नेताओं के साथ पूर्व जिपं अध्यक्ष केशर सिंह भी कांग्रेस के दावेदार रहे हों लेकिन राजपाल बिष्ट निश्चित रूप से इस सीट पर कांग्रेस के स्वाभाविक दावेदार थे। गुजरे 10 वर्ष से क्षेत्र में उनकी सतत उपस्थिति भी थी, युवा कार्यकर्ताओं की एक बड़ी फौज निःसंदेह उनकी ताकत मानी जा रही थी।कांग्रेस नेतृत्व ने चैंकाने वाला फैसला लेते हुए केशर सिंह नेगी को प्रत्याशी बनाकर क्षेत्र की कांग्रेस की आंतरिक राजनीति में उथल पुथल मचा डाली है। राजपाल के साथ सबसे बड़ी कमजोरी उनका क्षेत्र में बाहरी होने का लेबल था, केशर को टिकट दिए जाने से जाहिर है कि कांग्रेस नेतृत्व ने बाहरी वाले मुद्दे को खास तवज्जो नहीं दी है। लेकिन यह सवाल अनुत्तरित है कि राजेश कंडारी, कवींद्र इष्टवाल, सुरेंद्र सूरी भाई और जसपाल सिंह जैसे दावेदार जो अंतिम क्षण तक स्थानीय के नाम पर एकजुट होकर चारों में से एक को टिकट की मांग कर रहे थे, उनको हाई कमान कैसे संतुष्ट करेगा।बेशक पूर्व जिपं सदस्य केशर भी कुछ महीने से क्षेत्र की खाक छान रहे हैं और संसाधनों के पैमाने पर वह काफी मजबूत प्रत्याशी अवश्य हैं, लेकिन उनके समक्ष राजपाल समर्थक कार्यकर्ताओं के साथ कांग्रेस के स्थानीय छत्रपों को साधना भी बहुत बड़ी चुनौती होगी, वह भी बेहद कम समय में।यदि केशर ऐसा कर पाने में सफल नहीं होते तो सतपाल महाराज के किले में सेंध मरना आसान नहीं होगा, महाराज के आभामंडल को उन्ही के घर में छेदने के लिए पूरे कांग्रेस संगठन का एकजुट एकमुठ होना आवश्यक है। राजपाल व अन्य स्थानीय छत्रपों के समर्थकों का रुख तय करेगा कि 2022 के रण में महाराज ही महाराजा साबित होंगे या चैबट्टाखाल की धरती पर केशर की महक होगी…