उत्तराखण्ड

खराब स्टेयरिंग, गंजे टायर के साथ दौड़ रही थी बस

देहरादून: टिहरी में चंबा-उत्तरकाशी मोटर मार्ग पर दुर्घटनाग्रस्त रोडवेज बस तकनीकी खराबी के बावजूद पर्वतीय मार्ग पर दौड़ाई जा रही थी। 2013 मॉडल की यह बस करीब साढ़े पांच लाख किमी दौड़ चुकी थी व परिवहन निगम की निर्धारित आयु सीमा के नजदीक थी।

शुरूआती चार साल इस बस को सिर्फ पर्वतीय मार्ग पर दौड़ाया गया, लेकिन बाद में पर्वतीय मार्ग के लिए उपयुक्त न समझते हुए इसे हरिद्वार-दिल्ली दौड़ाया जाता रहा। चार दिन पहले 16 जुलाई को इस बस को दिल्ली रूट से हटाकर वापस पर्वतीय मार्ग पर लगा दिया गया, जबकि बस के चालक लगातार तकनीकी खराबी की शिकायत कर रहे थे।

14 जुलाई को भी चालक द्वारा बस में स्टेयरिंग के लॉक होने की शिकायत की गई थी। विश्वस्त सूत्रों की मानें तो बस का खराब पार्ट बदलने के बजाए पुराने पार्ट में ही ‘जुगाड़बाजी’ कर बस को रूट पर भेज दिया गया। यही नहीं बस के अगले टायर भी गंजे थे और रबड़ चढ़ाकर बस दौड़ाई जा रही थी। हादसे के पीछे यही दो वजह सामने आ रही हैं।

हालात ये हैं कि परिवहन निगम की 243 बसें गत एक जुलाई को अपनी आयु सीमा की मियाद पूरी कर चुकी हैं, फिर भी इन्हें सड़कों पर दौड़ाया जा रहा। इतना ही नहीं इस दिसंबर तक कुल 378 बसें कंडम की श्रेणी में आ जाएंगी। चंबा में दुर्घटनाग्रस्त हुई बस भी दिसंबर तक कंडम होने वाली बसों की सूची में शामिल है।

परिवहन निगम के नियमानुसार कोई भी बस पर्वतीय मार्ग पर अधिकतम छह साल अथवा छह लाख किलोमीटर तक चल सकती है। इसी तरह मैदानी मार्ग पर यह शर्त छह साल या आठ लाख किमी है। इसके बाद बस की नीलामी का प्रावधान है, लेकिन यहां ऐसा नहीं हो रहा।

निगम के पास 1407 बसों का बेड़ा है। इनमें 1059 बसें निगम की अपनी हैं जबकि 224 अनुबंधित हैं। इसके अलावा 124 जेएनएनयूआरएम की हैं। बेड़े की करीब 900 बसें ऑनरोड रहती हैं, जबकि बाकी विभिन्न कारणों से वर्कशॉप में। परिवहन निगम की बीती एक जुलाई की रिपोर्ट के मुताबिक ऑनरोड व ऑफरोड बसों में 243 कंडम हो चुकी हैं। नियमानुसार इन बसों की नीलामी हो जानी चाहिए थी मगर निगम इन्हें दौड़ाए जा रहा है। इससे या तो बीच रास्ते में बसें खराब हो जाती हैं या हादसे का शिकार बन जाती हैं।

ऐसे कई पिछले उदाहरण हैं जब बसों के स्टेयरिंग निकल गए या फिर ब्रेक फेल हो गए। पिथौरागढ़ में 20 जून 2016 को हुआ हादसा इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। आयु सीमा पूरी कर चुकी बस हादसे का शिकार बनी और चालक समेत 14 यात्री काल के गाल में समा गए। गुरूवार को हुआ हादसा भी इससे अलग नहीं। आरटीओ दिनेश चंद्र पठोई ने बताया कि स्टेयरिंग व टायर को लेकर तकनीकी जांच की जा रही है।

इतनी सुबह कैसे चल रहीं रोडवेज बसें, मांगी रिपोर्ट

राडवेज बसों के पर्वतीय मार्गों पर इतनी सुबह दौड़ने पर गढ़वाल मंडलायुक्त शैलेश बगोली ने आरटीओ दिनेश चंद्र पठोई से रिपोर्ट मांगी है। मंडलायुक्त के मुताबिक सुबह चार-पांच बजे पर्वतीय मार्ग पर जब वाहनों को चलने की इजाजत नहीं है तो बसों को दौड़ने की इजाजत कैसे मिली है। उनका तर्क है कि सुबह चार बजे जो बस चली, उसका चालक आधी रात दो-ढाई बजे उठ जाता होगा। ऐसे में नींद आने का खतरा भी बना रहता है। आरटीओ ने इस मामले में रोडवेज अधिकारियों से पर्वतीय मार्गों पर दौड़ रही सभी बसों का शेड्यूल मांगा है।

वापस क्यों पर्वतीय मार्ग पर लगाई बस

बस को मैदानी मार्ग से हटाकर फिर से पर्वतीय मार्ग पर लगाना सवाल उठा रहा है। इस मॉडल के साथ की ज्यादातर बसें पर्वतीय मार्गों से हटाकर स्थानीय रूटों पर चलाई जा रही हैं। जब 14 जुलाई को इस बस में खराबी आई, उसे जुगाड़बाजी कर कामचलाऊ कर दिया गया। उसी रात बस को दिल्ली भेजा गया और बस 15 जुलाई को वापस आई। 16 को बस भटवाड़ी गई और 17 को लौटी। फिर से 18 को बस भटवाड़ी भेजी गई और गुरूवार को लौटते वक्त हादसे का शिकार हो गई। मामले में हरिद्वार के एजीएम सुरेश चौहान एवं डिपो कार्यशाला के फोरमैन की भूमिका संदिग्ध है। महाप्रबंधक दीपक जैन ने बताया कि इसकी विभागीय जांच बैठा दी गई है।

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