देहरादून। देहरादून के शिक्षित छात्रों के संगठन, मेकिंग ए डिफरेंस बाय बीइंग द डिफरेंस (मैड) संस्था की ओर से रिस्पना नदी में चल रहे अवैध खनन के मुद्दे पर सरकार से कार्यवाही करने की मांग की गयी। गौरतलब है कि मैड संस्था कि ओर से एक वीडियो भी जारी कि गयी है, जिसमे दिखाया गया है कि आधे अधूरे निर्मित रिवरफ्रंट डेवलपमेंट प्रोग्राम की दीवारों के बीच, आम जनमानस की आंखों से दूर, बेइंतेहा खनन की कार्यवाही, पूरे लॉकडाउन में भी गतिमान रही है। संस्था ने अभी बताया कि उसके द्वारा तरला नागल क्षेत्र,में किए गए वृक्षारोपण अभियान के बाद, जब एक टुकड़ी को नदी के क्षेत्रों पर भेजा गया यह देखने के लिए कि उसके बहाव की स्थिति क्या है, तब भी यहां पाया गया कि नदी में प्रदूषण एवं प्लास्टिक की मात्रा जस की तस हैं और रिवरफ्रंट डेवलपमेंट के आधे अधूरे निर्माण की वजह से नदी के बीचो-बीच दो खंडर जैसी दीवारें कुछ क्षेत्रों में खड़ी की गई है।
संस्था ने यह भी बताया कि माननीय उच्चतम न्यायालय के हिंचलाल तिवारी बनाम कमला देवी के निर्णय के क्रम इस तरीके के नदी के तल पर निर्माण अवैध है लेकिन तब भी मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण, मसूरी देहरादून विनाश प्राधिकरण की भूमिका में आकर, रिस्पना नदी का दुश्मन बना हुआ है। मैड ने रिस्पना से ऋषिपर्णा अभियान पर भी सवाल उठाते हुए कहा,की केवल भाषण बाजी से नदी का पुनर्जीवन काल्पनिक हो सकता है। जहां एक और बड़े-बड़े नारे दिए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर धरातल पर बेहतरी के लिए तो कुछ नहीं, दुर्गति के लिए खनन, रिवरफ्रंट, अतिक्रमण जैसे मुद्दों पर सरकार ने जानबूझकर चुप्पी साधी हुई है।
मैड संस्था की ओर से यह अभी बताया गया कि सरकार को अगर रिस्पना पुनर्जीवन मे कोई रुचि नहीं है तो इस बात सभी के सामने स्पष्ट करना चाहिए। केवल खोखले नारों से युवाओं को गुमराह करने की कोशिश नहीं होनी चाहिए। गौरतलब है कि विगत 9 वर्षों से मैड दो बार केंद्रीय मंत्रियों के स्तर से, रिस्पना पुनर्जीवन पर, भारत सरकार का दखल ले चुका है। एक बार यहां केंद्रीय जल संसाधन मंत्री, हरीश रावत द्वारा 2014 में हुआ था जब मैड की ओर रिस्पना पुनर्जीवन पर राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान रुड़की कि शोध का अनुरोध किया गया था, वहीं दूसरी ओर यहां 2016 में हुआ था जब केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावेडकर ने रिस्पना नदी को गंगा रिवर बेसिन का भाग घोषित किया था।